Rajeshwaranand Ji Biography | राजेश रामायणी जी का जीवन परिचय

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Rajeshwaranand Ji Biography- श्री राजेश्‍वरानंद जी महाराज, एक ऐसे संत का नाम है, जिन्‍होंने अपनी अद्भुत व अतुल्‍य वाणी से श्रीराम कथा व श्री हनुमंत कथा, बड़ी ही सूक्ष्‍म विवेचना, मधुरता व भावमयी प्रस्‍तुति के साथ हम आप तक पहुंचाई है।

 राजेश रामायणी जी का जीवन परिचय
राजेश रामायणी जी

संत समाज उन्‍हें प्‍यार से राजेश रामायणी कहकर बुलाया करते थे। वैसे श्री रामायण जी का पाठ और श्री सुंदरकाण्‍ड का पाठ लगभग सभी ने किया है,

लेकिन यदि इन ग्रंथों में लिखे हर शब्‍द का अर्थ यदि आपको समझना है और जानना है तो-


आप श्री राजेश्‍वरानंद जी महाराज द्वारा कही गयी श्री राम कथा व श्री हनुमंत कथा को श्रवण करें तो आप पायेंगे

कि इन महान ग्रंथों में ऐसी-ऐसी कहानियॉ और प्रेरक प्रसंग व भक्ति प्रसंग छुपे हुये हैं जो हम कभी जान ही नहीं पाये।

महाराज जी द्वारा जब इन कथाओं का सूक्षम विवेचन किया जाता है तो श्रोतागण भक्ति भाव में गोते लगाते हुये ऐसे अनेक अनकहे व अनसुलझी कथाओं से परिचित होते हैं जो हमारे लिए बड़ी ही रोचक व बड़ी ही मनोरंजक साबित होती हैं।

Rajeshwaranand Ji Biography | राजेश रामायणी जी का जीवन परिचय

महाराज जी के जीवन के बारे में अधिक कोई नहीं जानता, क्‍योंकि महाराज जी बड़े ही सरल स्‍वभाव के थे और वे अपने आप को आधुनिक चकाचौंध से छिपाकर रखते थे, किंतु उनके खास भक्‍तों से महाराज जी के विषय में कुछ जानकारियॉ प्राप्‍त हुयी हैं।

राजेश रामायणी जी का जीवन परिचय
राजेश रामायणी जी

महाराज जी का जन्‍म 22 सितम्‍बर 1955 को उत्‍तरप्रदेश के जालौन जिले में स्थिर पचोखरा नामक गांव में एक ब्राम्‍हण कुल में हुआ था। महाराज जी के पिता का नाम श्री अमरदान शर्मा एवं माता जी का नाम श्रीमती शांति देवी था।


महाराज जी के पिता एक प्रसिद्ध भजन गायक थे एवं माताजी पूजा पाठ में अत्‍याधिक रुचि रखने वाली धार्मिक महिला थीं इसलिए महाराज जी को बचपन से ही अपने आधात्‍म जीवन को शुरूआत करने में कोई कठिनाई नहीं हुयी।  

महराज जी की प्रारंभिक शिक्षा सन 1967 में गांव के ही नेरो जूनियर हाई स्‍कूल में हुयी। पढाई के दौरान महाराज जी अपनी कक्षा में चौपाईयॉ सुनाया करते थे जिससे उनके शिक्षक व गॉव के लोग उनसे बहुत प्रभावित हुये।

राजेश रामायणी जी का जीवन परिचय
 राजेश रामायणी जी

उनके बाल्‍यकाल में उनके अध्‍यापक पंडित श्री नरहरि मिश्र बताते हैं कि राजेश (महाराज जी) में एक दैवीय प्रतिभा बचपन से ही थी,

उनके हिन्‍दी व संस्‍कृत के पाठ्यक्रम में दिये गये बाबा सूरदास, तुलसीदास, माता मीरा, रहीम, रसखान व संत कबीर के पद व भजन राजेश को सहजता से अपने आप ही कंठस्‍थ हो जाया करते थे

और जब कक्षा में उन्‍हें पाठ सुनाने के लिए कहा जाता तो बिना संगीत के ज्ञान के ही बालक राजेश उन पदों को अपनी स्‍वयं की निर्मित की गयी पद्धति में

कभी भैरवी, कभी शिवरंजनी, कभी मालकौंस, तो कभी राग मारू विहाग में बड़े ही भाव से गाकर सुनाया करते थे,



जिससे कक्षा के सारे छात्र व अध्‍यापक बड़े ही भाव विभोर होकर राजेश को सुना करते थे और राजेश पदों का गायन करते-करते भाव से रोने लगते थे।  

रामकथा मर्मज्ञ मुरारी बापू भी महाराज द्वारा की गयी रामकथा को काफी पसंद किया करते थे और वे राजेश्‍वरानंद जी महाराज को अपना छोटा भाई मानते थे।


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अगर बात की जाये महाराज जी के नजदीकी कथावाचक या भजन गायकों की तो सबसे पहला नाम आता है भजन सम्राट गौलोकवासी श्री विनोद अग्रवाल जी का, जो महाराज जी द्वारा लिखे गये भजनों एवं पदों को अपने भजन संध्‍या कार्यक्रमों में गाया करते थे।

 राजेश रामायणी जी का जीवन परिचय
राजेश रामायणी जी

इसके अतिरिक्‍त महाराज जी चहेते कथावाचक पूज्‍य श्री प्रेमभूषण जी महाराज, बुंदेलखण्‍ड के प्रसिद्ध गायक पंडित पवन तिवारी जी व श्री देशराज पटैरिया जी भी शामिल हैं।

महाराज राजेश रामायणी जी का पारिवारिक जीवन

यदि महाराज जी के पारिवारिक जीवन की बात की जाये तो महाराज जी ग्रहस्‍थ संत थे, उनके एक पुत्र व एक पुत्री हैं।

राजेश रामायणी जी का जीवन परिचय
राजेश रामायणी जी

उनके पुत्र का नाम महंत श्री गुरु प्रसाद शर्मा है, जो ग्राम पचोखरा में ग्राम प्रधान हैं तथा उनकी पुत्री का विवाह हो गया है, जिनका नाम दीदी भक्ति प्रभा है, वे भी श्री रामकथा व श्री हनुमंत कथा कहा करती हैं।

महाराज जी के एक भाई भी है, जो महाराज जी से छोटे हैं, जिनका नाम श्री विवेकानंद जी महाराज है, जिन्‍हें आपने अक्‍सर महाराज जी के साथ कथाओं में संगत करते हुये देखा होगा।

राजेश रामायणी जी का जीवन परिचय
 राजेश रामायणी जी

इन सब के अतिरिक्‍त महाराज जी के सबसे प्रिय एवं संगीत के साथी श्री मुरलीधर महाराज जी हैं, वे भी अक्‍सर आपको महाराज जी के कथा कार्यक्रमों में संगत करते हुये दिखाई दिये होंगे।  


एक संत क्‍या होता है, स्‍वामी जी ने ऐसा उपदेश नहीं दिया, बल्कि अपने जीवन के क्रियाकलापों से कर के दिखाया। महाराज जी स्‍वयं ही भजन, गीत, गजल, पद व कवितायें लिखा करते थे और अपनी कथा के दौरान उनका गायन करके प्रभु को रिझाया करते थे।

महाराज जी अपनी कथा प्रारंभ करने से पहले यह स्‍तुति अवश्‍य ही किया करते थे जो है- ‘‘लेत सुधि सदा दीन की, सहज दया के धाम। जननी-जनक राजेश के, प्रभु श्री सीताराम ।।’’

यह पंक्तियॉ महाराज जी ने स्‍वयं ही लिखी थी, वो भी 15 वर्ष की अल्‍पायु में और उसके बाद महाराज जी ने अपने आराध्‍य प्रभु श्री सीतारामजी की भक्ति में लीन होकर अनेक पदों व भजनों की रचना की। उनकी गायन शैली बड़ी ही अदभुत थी।

महाराज श्री द्वारा कही गयी ऐसी अनेक कथायें हैं जो आज भी श्रोताओं के दिल में बसी हुयी हैं और उन कथाओं को सुनने के बाद कोई भी अपने आंसू नहीं रोक पाता है जिनमें से प्रमुख हैं-

एकादशी की कथा

  • जब भगवान श्री राम स्‍वयं माता सीता अपने तीनों भाइयों व श्री हनुमाजी के साथ आकर भक्‍त के लिए भोजन बनाते हैं।
  • दूसरी है जज साहब की कथा, जिनके लिए प्रभु श्री राम स्‍वयं कठघरे में खड़े होकर गवाही देने आते हैं।
  • तीसरी है मामा प्रयागदास की कथा, जिसमें माता सीता स्‍वयं भक्‍त को राखी बांधती है।

इसके अलावा महाराज जी के द्वारा कही गयी ऐसी अनेक कथायें हैं जिनको सुनकर आज भी भक्‍तगण भाव से भरकर अपने आंसू बहाने पर मजबूर हो जाते हैं।

यदि आप महाराज जी द्वारा कही गयी कथा व उनके द्वारा गाये गये भावपूर्ण भजनों को सुनना चाहते हैं तो ‘जीवन धन’ नामक यूटयूब चैनल पर महाराज जी की सारी कथायें व भजन उपलब्‍ध हैं तो आप जाकर आनंद ले सकते हैं।

महाराज जी का बचपन से ही प्रभु श्री राम के प्रति आकर्षण था। इसलिए वे अक्‍सर अपने गॉव में या आसपास के गॉव में, जहॉ भी रामकथा का आयोजन होता, अपने पिता के साथ या अकेले ही कथा श्रवण करने चले जाया करते थे।


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विशेष कथा 

बाल्‍यकाल में एक बार महाराज जी तीर्थराज प्रयाग कुंभ में दर्शन करने गये तो एक साधारण से तंबू में श्री रामकथा चल रही थी,

महाराज जी जाकर बैठ गये और कथा श्रवण करने लगे। कथा समाप्‍त होने पर लोग जाने लगे, परंतु महाराज जी आंख बंद किये हुये लगातार आंखों से आंसू बहाकर होंठों से धीरे-धीरे कुछ कह रहे थे,

तभी उनपर कथा व्‍यास जी की द़ष्टि पड़ी और वे महाराज जी के पास आकर उनके सिर पर हाथ फेरते हुये बोले कि बच्‍चा तुम क्‍यों रो रहे हो, क्‍या तुम इस मेले में अपने परिजनों से बिछड़ गये हो?



तब नन्‍हें राजेश ने आंखे खोली और व्‍यासजी के चरणों में लेट गये और बोले कि मैं बड़ा ही भाग्‍यशाली हूं, जो आपने अपनी कथा के माध्‍यम से मुझे साकेतधाम के दर्शन करवा दिये और दिव्‍य राम दरवार की झांकी दिखा दी, आप मुझे अपना सानिध्‍य प्रदान कीजिए।

व्‍यासजी नन्‍हें राजेश की इतनी बड़ी-बड़ी बातें सुनकर दंग रह गये और फिर उन्‍होंने अपनी दिव्‍य द़ष्टि से महाराज के आभामंडल (शरीर को चारों ओर से घेरकर रखने वाली एक अद़ृश्‍य शक्ति जो उस इंसान के तेज का प्रतीक होती है)

को देखा और वे महाराज जी के तेज को पहचान गये और मुस्‍कुरा कर नन्‍हें राजेश से कहा कि मैं तुम्‍हें दीक्षा दूंगा। यह संत कोई और नहीं, उनके गुरू पूज्‍य श्री अविनाशी राम जी थे।


राजेश रामायणी जी अपने गुरू के प्रति पूर्ण समर्पित थे और उनके सानिध्‍य में रहकर श्री राम कथा का अध्‍ययन किया व ज्ञान प्राप्‍त किया और बाद में महाराज जी ‘मानस मर्मज्ञ’ के नाम से विख्‍यात हो गये,

क्‍योंकि राम कथा कहने वाले कई कथा वाचक हैं लेकिन जो कथा महाराज जी कहा करते थे वैसी कथा कोई भी नहीं कह पाया और रामायण के ऐसे अनसुने किस्‍से महराज जी अपनी कथाओं में सुनाया करते थे,

जो आपने खुद रामायण में भी नहीं पढे होंगे।



वे अपनी कथाओं में युवाओं को भी संदेश दिया करते थे जिसमें जीवन की कला से लेकर लक्ष्‍य प्राप्ति के सरल मार्ग बताया करते थे।

वे एकमात्र ऐसे संत थे, जिन्‍हे सुनने के लिए बुजुर्ग कम युवा ज्‍यादा आतुर रहते थे। महाराज जी ने अपनी लेखन और गायन कला पर कभी घमंड नहीं किया वे सदा मुस्‍कुराते रहते और हरि नाम गाकर प्रभु को रिझाया करते थे।

राजेश्वरानंद जी की मृत्यु कैसे हुई

राजेश रामायणी जी का जीवन परिचय
  राजेश रामायणी जी

महाराज जी छत्‍तीसगढ में अपने एक भक्‍त के कहने पर कथा कर रहे थे कि 10 जनवरी 2019 को रात के 01 बजे उनकी ह़दय गति रूक गयी

और महराज जी इस शरीर को त्‍यागकर गौलोकधाम चले गये जो हमारे लिए एक बहुत बडी अपूर्णनीय क्षति है क्‍योंकि ऐसे सरल संत इस धरती पर बार-बार जन्‍म नहीं लेते हैं।

आज महाराज जी तो हमारे बीच नहीं है केवल उनकी कथायें और उनके द्वारा दिये गये संदेश ही उपलब्‍ध हैं, जिन्‍हें आप यूटयूब पर देख व सुन सकते हैं।

वो शरीर रूप में भले ही हमारे बीच न हों, लेकिन उनके द्वारा दिये गये संदेश व उपदेश आज भी महाराज जी के रूप में हमारे साथ मौजूद हैं।Rajeshwaranand Ji Biography



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