Premanand ji maharaj Biography | प्रेमानंद जी महाराज की पूरी जानकारी

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प्रिय पाठको शायद आपने भी सुना होगा कि वृन्‍दावन में एक ऐसे संत(Premanand ji maharaj) हैं जिनकी दोनों किडनियॉ विगत कई वर्षों से खराब हैं,जो पीले वस्‍त्र धारण करते हैं और लोगों के हर स्‍तर के प्रश्‍नों के उत्‍तर एकांत वार्ता के माध्‍यम से देते हैं

Premanand ji maharaj Biography

तो आज के इस आलेख में हम आपको उन्‍हीं बाबा की संपूर्ण जीवन यात्रा से अवगत करायेंगे, जिनका नाम है श्री प्रेमानंद जी महाराज

और हम आगे के लेख में महाराज श्री को पीले बाबा के नाम से संबोधित करेगें, वैसे तो महाराज श्री का कोई उपनाम नही है लेकिन हम प्रेम वश बाबा को पीले बाबा के उपनाम से संबोधित करेगें। हमारा यह उपनाम आपको कैसा लगा हमें कमेंट करके अवश्‍य बतायें।

हम आपको भरोसा दिलाते हैं कि यदि आप इस आलेख को अंत तक पूरा पढ़ेंगे तो महाराज जी के संदर्भ में आपको कोई और आलेख पढ़ने की जरूरत ही नहीं पड़ेगी । तो चलिए शुरु करते हैं :-

प्रेमानंद जी महाराज कौन है |Who is premanand ji maharaj

इस पोस्ट मे क्या है देखो




Premanand ji maharaj महाराज जी का जन्‍म एक बेहद ही गरीब ब्राम्‍हण परिवार में कानपुर उत्‍तर प्रदेश में हुआ था । पीले बाबा(प्रेमानंद जी महाराज) का बचपन का नाम अनिरुद्ध कुमार पाण्‍डेय था । उनके पिताजी का नाम श्री शंभू पाण्‍डेय एवं माताजी का नाम श्रीमती रामा देवी था

पीले बाबा के घर में हमेशा से आध्‍यात्‍मिक माहौल रहा । उनके घर में हमेशा संतों व महात्‍माओं का आगमन होता था । जिनके मुख से संकीर्तनसत्‍संग सुनते-सुनते पीले बाबा के हृदय में बचपन में ही आध्‍यात्‍म का बीज अंकुरित हो गया ।

कक्षा पांचवी तक आते-आते पीले बाबा को सभी प्रकार के चालीसा कंठस्‍थ हो गये । वे नित्‍य प्रति‍ मंदिर जाते और कम से कम 10 से15 प्रकार के चालीसाओं का पाठ करते और ति‍लक लगाकर स्‍कूल पढ़ने जाते ।

बचपन में सत्‍संग श्रवण करने के दौरान पीले बाबा(Premanand ji maharaj) अक्‍सर मन में सोचते कि ये घर के सभी सदस्‍य एक न एक दिन मर जायेंगे तो फिर मेरा इस दुनिया में कौन है । मैं किसके पास रहूंगा, मुझे किसका सहारा रहेगा ।



चूंकि महाराज जी के दादीजी भी संत हुये, फिर उनके पिताजी संत हुये और अब स्‍वयं महाराज जी संत स्‍वरूप धारण करके समाज को जगाने का कार्य कर रहे हैंशायद अपने पूर्वजों के ही आशीर्वाद से पीले बाबा(Premanand ji maharaj) के मन में यह प्रेरणा हुयी कि मेरे तो सिर्फ भगवान है, इनके अलावा और कोई नहीं ।

इसलिए घर परिवार छोडकर भगवान के पास जाना ही उन्‍हें एकमात्र उपाय समझ में आया ।

जब पीले बाबा कक्षा 9वीं में पास हुये तब तक उनका मन पूर्ण रूप से यह निश्‍चय कर चुका था कि उनका इस संसार में सिवाय ईश्‍वर के और कोई नहीं है, इसलिए उन्‍होंने घर छोडने का पूरी तरह से मन बना लिया ।

प्रेमानंद जी महाराज(पीले बाबा) अपनी माता से सबसे अधिक स्‍नेह करते थे इसलिए उन्‍होंने अपने मन की यह बात सबसे पहले अपनी मॉ को बतायी । उन्‍होंने अपनी मॉ से कहा,
अम्‍मा, हमारा मन कहता है कि घर से भागकर भगवान की प्राप्‍ति‍ करें ।

पीले बाबा की मॉ बोली भागकर थोडी ही भगवान मिलते हैं, भगवान को प्राप्‍त करना है तो बैठकर भजन करो । पीले बाबा बोले कि नहीं हमारा मन है कि बाबाजी बन जायें, ये बात सिर्फ आपको बता रहे हैं ।

लेकिन मॉ को लगा कि नन्‍हा बच्‍चा है, किसी संत का सत्‍संग सुन लिया होगा तो मन में ऐसा विचार आया होगा इसलिए ऐसी बात कर रहा है, ऐसा सोचकर वह अपने घर के कामों में व्‍यस्‍त हो गयी ।

पीले बाबा(प्रेमानंद जी महाराज) बताते हैं कि अगले दिन सुबह 03 बजे मेरे मन में ऐसी व्‍याकुलता उठी कि अब बस भगवान के चरणों मे ही प्राण न्‍यौछावर करना है और मात्र १३ वर्ष की उम्र में प्रेमानंद जी महाराज ने घर छोड दिया और निकल गये अनंत यात्रा पर ।

इस दौरान वे केवल आकाशवाणी को स्‍वीकार किया जिसका अर्थ है-


बिना मांगे बिना कुछ कहे बिना किसी प्रयास के केवल ईश्‍वर की कृपा से जो मिल जाये उसे स्‍वीकार करना ।

Premanand ji maharaj wikipedia

बचपन का नाम अनिरुद्ध कुमार पाण्‍डेय
पिता का नाम श्री शंभू पाण्‍डेय
माता का नामश्रीमती रामा देवी
गुरू का नाम श्री हित गोविंद शरण जी महाराज
निवास स्‍थानवृन्‍दावन
आश्रम वृन्‍दावन
Official YoutubeBhajan Marg
Official Websitevrindavanrasmahima.com





प्रेमानंद जी महाराज ने संन्‍यास कैसे लिया?

महाराज जी(प्रेमानंद जी महाराज) ने जब संन्‍यास में प्रवेश किया तब शुरुआत में उनकी तपोस्‍थली वाराणसी थी । वाराणसी में महाराज जी का नित्‍य प्रति का नियम था गंगाजी में स्‍नान कर तुलसी घाट पर एक विशाल पीपल के वृक्ष के नीचे आसन लगाकर कुछ देर तक बैठकर गंगा जी और भगवान महादेव का ध्‍यान करना ।

उसके बाद भिखारियों की लाइन में बैठकर भीख मांगना और वह भी दिन में केवल एक बार 10 से 15 मिनट तक के लिए । यदि इतने समय में कोई आकर भिक्षा दे गया तो ठीक, नहीं तो गंगा जल पीकर भगवान का ध्‍यान करते हुये उठकर चल दिये अपने 24 घंटे के एकांत वास के लिए ।

Premanand ji maharaj Biography

और इस प्रकार की दिनचर्या में प्रेमानंद जी महाराज को कई-कई दिन तक बिना भोजन के ही मात्र गंगा जल पीकर ही रहना पडता और ऐसे में यदि कोई रोटी खाते हुये दिख जाये तो महाराज जी सोचते यह कितना भाग्‍यशाली है जो इसे रोटी खाने को मिल रही है ।

अपने शुरुआती दौर में श्री हित प्रेमानंद गोविंद शरण जी महाराज को ऐसी कठिन परिस्थितियों का सामना करना पडा ।

श्री हित प्रेमानंद गोविंद शरण जी महाराज का वृन्‍दावन आने का रोचक प्रसंग

तो नित्‍य प्रति की तरह उस दिन भी महाराज जी(Premanand ji maharaj) ध्‍यान में बैठे हुये थे कि अचानक से उनके मन में भगवान महादेव जी की कृपा से प्रेरणा हुयी कि वृन्‍दावन का नाम तो सुना है, पर कभी गये नहीं, यह वृन्‍दावन कैसा होगा इसकी महिमा तो बहुत सुनी है ।

Katha Star के प्रिय पाठको, जब भगवान भोलेनाथ किसी भक्‍त पर अपने अहेतु की कृपा करते हैं तो उसे निश्‍चित ही प्रिया प्रियतम के चरणों की भक्ति प्रदान करते हैं ।

महाराज जी पर भी शायद भगवान भोलेनाथ कुछ ऐसी की कृपा करने वाले थे इसीलिए तो अचानक से श्रीधाम वृन्‍दावन की प्रेरणा महाराज जी के मन में हुयी । महाराज जी ने मन ही मन वृन्‍दावन के बारे में विचार किया और यह सोचते हुये वहॉ से उठकर चल दिये कि जो भी हो,

जैसा भी हो, देखा जायेगा और जाकर नित्‍य प्रति की तरह भिक्षा के लिए बैठे और फिर वहॉ से अपने एकांत वास के लिए निकल गये ।



प्रेमानंद जी महाराज अगले दिन फिर अपने नित्‍य के नियमानुसार तुलसी घाट पर बैठे हुये थे तभी एक आपरिचित संत उनके पास आये और बोले कि ”भाईजी श्री हनुमान प्रसाद पोद्दार जी का अंध विश्‍वविद्यालय जो काशी में स्थित है,

उसमें श्री रामशर्मा आचार्य जी द्वारा एक धार्मिक आयोजन का प्रबंध किया गया है, जिसमें दिन में श्री चैतन्‍य लीला एवं रात्रि में रासलीला का मंचन होना है ।” चलो महात्‍मा हम दोनों लीला का दर्शन करने चलते हैं ।

महाराज जी(Premanand ji maharaj) ने कभी रासलीला तो देखी नहीं थी, हॉ गांव में होने वाली रामलीला जरूर देखी थी इसलिए मन में सोचा कि जैसे गांव में एक रात के लिए रामलीला का मंचन होता है वैसे ही रासलीला होती होगी ।

चूंकि महाराज जी का स्‍वभाव था हमेशा एकांत में रहना और एकांतवास करना । इसलिए उन्‍होंने उन बाबाजी से कह दिया कि आप जाइये, मुझे आवश्‍यकता नहीं है । तो वे बाबाजी फिर बोले, अरे महात्‍मा, श्रीधाम वृन्‍दावन से कलाकार आये हुये हैं और यह लीला पूरे एक महीने तक चलेगी, चलो चलकर दर्शन करके आते हैं, बड़ा आनंद आयेगा ।

महाराज जी फिर बोले कि आपको दर्शन करने जाना है तो आप जाइये, मुझे इसकी आवश्‍यकता नहीं है । मैं अपने में मस्‍त हॅू । आप मुझे क्‍यों छेड़ रहे हैं । पर बाबाजी कहॉ मानने वाले, वे फिर बोले अरे महात्‍मा, बस एक बार मेरी बात मान लो, सिर्फ एक बार मेरे कहने पर चलो, फिर में दोबारा नहीं कहूंगा ।

महाराज जी(Premanand ji maharaj) ने सोचा कि ये बाबाजी इतना हठ क्‍यों कर रहे हैं, शायद इसमें महादेव जी की ही कोई इच्‍छा होगी । ऐसा सोचकर और उन बाबाजी की बात रखने के लिए महाराज जी उन बाबाजी के साथ लीला देखने चले गये ।



चूंकि दिन का समय था और श्री चैतन्‍य लीला का मंचन हो रहा था, महाराज जी ने लीला देखी तो बड़ा आनंद आया । चैतन्‍य लीला देखकर महाराज जी को इतना आनंद आया कि शाम के समय बाबाजी को कहने की आवश्‍कता ही नहीं पड़ी और रासलीला प्रारंभ होने के पहले ही महाराज जी वहॉ लीला देखने पहुंच गये ।

श्री चैतन्‍य लीला और रासलीला से महाराज जी इतने प्रभावित हुये कि एक महिने तक उनका यही नियम बन गया । हर दिन महराज जी लीला का दर्शन करने जाते और इस आनंद में कब एक महिना बीत गया, पता ही नहीं चला ।

जैसे ही लीला का समापन हुआ तब महाराज जी(Premanand ji maharaj) को ज्ञात हुआ कि अरे लीला तो समाप्‍त हो गयी, सारे कलाकार वापस वृन्‍दावन जा रहे हैं, अब मेरा क्‍या होगा।

यह सोचकर उनके मन में हाहाकार मच गया कि अब मैं क्‍या करुंगा, मेरा क्‍या होगा, अब मैं जिउंगा कैसे, मुझे तो अब वृन्‍दावन जाना है । महाराज जी सोचने लगे कि ये सब कलाकार वापस वृन्‍दावन जा रहे हैं तो वृन्‍दावन में भी ये सब ऐसी लीलाओं का आयोजन करते रहते होंगे और

चूंकि ये कलाकार हैं तो ये हमेशा कहीं न कहीं लीलओं का मंचन करते रहते होंगे अगर मैं इनके साथ लग जांउ, तो मुझे रोज लीला देखने को मिलती रहेगी, इसके बदले में मैं इनकी सेवा करता रहूंगा ।

मन में ऐसा भाव लेकर महाराज जी टीम के संचालक के पास पहुंचे और उन्‍हें साष्‍टांग दंडवत करके अपने मन के भाव उनसे प्रकट किये कि स्‍वामीजी, हम गरीब बाबा हैं, हमारे पास पैसे तो हैं नहीं, हम आपकी सेवा करेंगे और बदले में हमको रासलीला देखने को मिलेगी, हमें अपने पास रख लो ।

संचालक महोदय बड़े ही विनम्र भाव से बोले कि अरे नहीं बाबा, ऐसा तो संभव नहीं है, ऐसा कैसे हो सकता है । तब महाराज जी बोले कि स्‍वामी जी हम सिर्फ रासलीला देखना चाहते हैं और कुछ नहीं ।
तब संचालक महोदय फिर बोले कि

बाबा तू बस एक बार वृन्‍दावन आजा, बिहारी जी तुझे छोड़ेंगे नहीं ।




श्री हित प्रेमानंद गोविंद शरण जी महाराज कहते हैं कि इस एक वाक्‍य ने मेरा जीवन बदल कर रखा दिया । मैं इस वाक्‍य को गुरु मंत्र मानता हूं और उन संचालक महोदय को अपना गुरु ।
बस इसके बाद उनके मन में एक ही लगन लग गयी कि मुझे वृन्‍दावन जाना है, मुझे वृन्‍दावन जाना है, मुझे वृन्‍दावन जाना है ।

कथा स्‍टार के प्रिय पाठको, यह होती है भूत भावन भगवान भोलेनाथ की अहेतु की कृपा कि कल तक जो महाराज जी अपने नित्‍य के नियमानुसार भगवान का ध्‍यान करते हुये अपने भजन और एकांतवास में मस्‍त थे । आज वो वृन्‍दावन जाने के लिए पागलों की तरह हठ लगाये बैठे हैं ।

भगवान की कृपा को आप इस तरह अनुभव कीजिए कि पहले अनायास ही मन में प्रेरणा आना कि कैसा होगा वृन्‍दावन, फिर उसी समय अचानक से रासलीला का आयोजन होना, जिसकी सूचना किसी अपरिचित बाबाजी द्वारा महाराज जी को देना और उन्‍हें हठपूर्वक लीला में ले जाना,

और उसके बाद महाराज जी के मन में प्रेरणा होना कि मुझे वृन्‍दावन जाना है । यह कृपा नहीं है तो फिर क्‍या है ।

चलिये पुन: कथा में प्रवेश करते हैं और आपको महाराज जी के जीवन की आगे की यात्रा करवाते हैं

प्रेमानंद जी महाराज को वृन्‍दावन जाने में किसने मदद की ?

एक माह की लीला का दर्शन करने के बाद महाराज जी फिर अपने पुराने नियम के अनुसार गंगाजी में स्‍नान कर तुलसी घाट पर बैठकर ध्‍यान करने लगे और भिक्षा के लिए बैठकर एकांत वास के लिए निकल जाने वाला उनका क्रम फिर से शुरु हो गया, लेकिन इस दिनचर्या में एक नयी बात जुड़ गयी और वह यह कि मुझे वृन्‍दावन जाना है, मुझे वृन्‍दावन जाना है ।

यह क्रम कुछ दिन तक ही चला, ज्‍यादा दिन नहीं बीते थे कि एक दिन महाराज जी प्रात:काल तुलसी घाट पर ध्‍यान में बैठे हुये थे कि पास स्थित संकट मोचन हनुमान मंदिर के बाबा युगल किशोर जी प्रसाद लेकर महाराज जी के पास आये और बोले कि लो बाबा प्रसाद ले लो ।

अब महाराज जी(Premanand ji maharaj) ठहरे एकांत वासी, उनका किसी से परिचय तो था नहीं, और ऐसे किसी अपरिचित से खाने की कोई वस्‍तु लेना उन्‍होंने उचित नहीं समझा इसलिए वे बोले कि क्‍यों ले लो ।

युगल किशोर जी बोले कि बाबा अंदर से प्रेरणा हुयी है इसलिए । महाराज जी बोले कि हमीं को क्‍यों प्रेरणा हुयी, इतने लोग बैठे हैं, किसी को भी दे दो, मुझे ही क्‍यों । तब बाबा युगल किशोर जी बोले कि नहीं, नहीं बाबा आपको देने के लिए ही प्रेरणा हुयी है, संकट मोचन का प्रसाद है, ले लीजिए ।



जब महाराज जो उनके व्‍यवहार से प्रतीत हुआ कि इनसे कोई खतरा नहीं है, कोई स्‍वार्थ नहीं है, इनका भाव निष्‍काम है तब महाराज जी ने वह प्रसाद स्‍वीकार कर लिया । प्रसाद पाया और कमंडल से गंगा जल पीया । उसके बाद बाबा युगल किशोर जी बोले कि बाबा चलो मेरी कुटिया ।

महाराज जी बोले कि नहीं, नहीं, यह मेरा नियम है, मैं किसी गृहस्‍थ के दरवाजे नहीं जाता और ना ही उसके घर में प्रवेश करता हूं, बस यहीं खुले आसमान के नीचे रहता हूं और भजन करता हूं, जो भिक्षा मिल जाती है वही पा लेता हूं ।

तब युगल किशोर जी बोले कि बाबा मैं गृहस्‍थ नहीं हॅू, मैं भी बाबाजी ही हूं । तब स्‍नेहवश महाराज जी उनकी कुटिया में गये । जहॉ युगल किशोर जी ने अपने हाथ से दाल रोटी बनाकर महाराज को खिलाया ।

Premanand ji maharaj Biography

इससे महाराज जी के उदर की भूख तो शांत हो गयी, लेकिन उस भूख का क्‍या, जो उनके मन में लगी है । चाहे कैसी भी परस्थितियॉ क्‍यों न हो, महाराज जी के मन में एक बात हमेशा खटकती रहती, मुझे वृन्‍दावन जाना है, मैं वृन्‍दावन कैसे जा पाउंगा ।

चूंकि युगल किशोर जी उन्‍हें भले मानुष प्रतीत हो रहे थे इसलिए उनसे रहा नहीं गया और वे तुरंत कह उठे क्‍या आप मुझे वृन्‍दावन पहुंचा सकते हैं । अब यह तो भगवान की लीला ही है कि मानो युगल किशोर जी इस प्रश्‍न के लिए तैयार ही बैठे थे । प्रश्‍न सुनते ही वे झट से बोले कि हॉ बाबा पहुंचा सकता हूं, बताइये आपको कब जाना है ।

महाराज जी(Premanand ji maharaj) बोले कि हम तो तैयार ही बैठे हैं, जब आप व्‍यवस्‍था करा दो । युगल किशोर जी बोले कि ठीक है, आप कल की तैयार कीजिए, कल ही आपको वृन्‍दावन ले चलूंगा ।

जो इतना सुना, महाराज जी के आनंद का तो ठिकाना ही नहीं रहा, उनका रोम-रोम रोमांचित हो उठा, मन प्रसन्‍न हो गया कि कल वृन्‍दावन जाना है, कल वृन्‍दावन जाना है ।

उस समय कोई डायरेक्‍ट रेलगाड़ी वनारस से मथुरा के लिए नहीं थी तो महाराज जी, युगल किशोर जी के साथ चित्रकूट आ गये । जहॉ दोनों लोग तीन-चार दिन रहे और फिर चित्रकूट से युगल किशोर जी ने मथुरा जाने वाली रेलगाड़ी में महाराज को बैठा दिया ।

रेलगाड़ी में मथुरा की यात्रा के दौरान दो लोगों से महाराज जी का परिचय हुआ, जो महाराज जी के विचारों से बहुत प्रभावित हुये और उन्‍हें कुछ रूपये देने लगे । चूंकि महाराज जी के पास एक रूपया भी नहीं था, पर फिर भी उन्‍होंने रूपये लेने से इंकार कर दिया, क्‍योंकि वे जानते थे कि –

”जिस मालिक ने जन्‍म दिया है, अन्‍न वस्‍त्र भी देवेगा, सर ढकने को छत देवेगा, खबर हमारी लेवेगा ”




तब वे दोनों लोग महाराज जी बोले कि हम भी मथुरा जा रहे हैं, आप हमारे साथ चलो, हम जहां ठहरे हैं आज रात वहीं ठहर जाना और रात्रि विश्राम करके कल सुबह वृन्‍दावन निकल जाना।

महाराज जी ठहरे स्‍वभाव के सरल, दुनियादारी से मतलब न रखने वाले तो वे तुरंत मान गये कि ठीक के भइया, आज तुम्‍हारे साथ रुक जाता हूं, कल तुम मुझे वृन्‍दावन पहुंचा देना ।

मथुरा में राधे श्‍याम गेस्‍ट हाउस के बाहर महाराज जी को बैठाकर वे लोग बोले कि हम अंदर जा रहे हैं, थोड़ी देर में आपको बुला लेंगे । आप यही बाहर बैठकर प्रतीक्षा करो ।

रात का समय था और ठंडी का मौसम था, महाराज जी गेस्‍ट हाउस के बाहर बैठकर अपने बुलावे का इंतजार करने लगे, पर बहुत समय बीत गया, कोई बुलाने नहीं आया ।
पर महाराज जी को इस अमानवीय व्‍यवहार का कोई ख्‍याल ही नहीं था, क्‍योंकि उनके मन में बस इस बात की प्रसन्‍नता हिलकोंरें ले रही थी कि मैं वृन्‍दावन आ गया हूं ।

इन्‍हीं विचारों में खोये हुये प्रेमानंद जी महाराज राधेश्‍याम गेस्‍टहाउस के बाहर बैठे हुये थे, उस समय रा‍त्रि के 11 बजे के लगभग समय रहा होगा । तभी एक सज्‍जन आये और बोले बाबा जय श्री कृष्‍ण, कैसे बैठे हो ।

तो महाराज जी ने सारी कहानी उन सज्‍जन को बतायी । वे सज्‍जन महाराज जी को अपने घर ले गये, उन्‍हें भरपेट स्‍वादिष्‍ट भोजन कराया और रात्रि विश्राम कराया ।

अगले दिन सुबह होते ही महाराज जी(Premanand ji maharaj) सबसे पहले पहुंचे यमुना जी । दिन था एकादशी का । यमुना जी में स्‍नान करके सीधे पहुंच गये भगवान श्री द्वारिकाधीश जी के दर्शन करने ।

जैसे की छवि का दर्शन किया तो ऑखों की पुतलियॉ ठहर सी गयी, मानो अब तक के जीवन का सार मिल गया हो । मन में ऐसे भाव उठने लगे कि अब तक जीवन व्‍यर्थ चला गया, पूरा जीवन भाग-दौड़ में व्‍यतीत हो गया, आखिरी मंजिल तो यही है ।

इस प्रकार के मनोभावों के कारण महाराज जी छवि को देखकर खूब जोर-जोर से चिल्‍ला-चिल्‍लाकर रोने लगे । यह तो हो गया महाराज जी का आंतरिक स्‍वरूप ।

बाह्य स्‍वरूप का वर्णन करूं तो बड़ी-बड़ी जटायें, चेहरे पर एक अप्रतिम चमक, विशालकाय शरीर, बड़ी-बड़ी दाडी और शरीर पर सिर्फ एक वस्‍त्र लपेटे हुये छवि का दर्शन कर रहे हैं और रोये जा रहे हैं ।

जब प्रेमानंद जी महाराज को देखकर सभी आश्‍चर्यचकित हो गये

उन्‍हें इस बात का जरा भी ख्‍याल नहीं कि वे कहॉ खड़े हैं, क्‍या कर रहे हैं, उन्‍हें कौन-कौन देख रहा है, बस रोये जा रहे हैं । प्रेमानंद जी महाराज का ये स्‍वरूप देखकर मंदिर में आये अन्‍य दर्शनार्थी आश्‍चर्यचकित हो गये, यह दृश्‍य देखकर ऐसा लग रहा था मानो आज भगवान स्‍वयं अपने भक्‍त को दुलारने प्रकट हो गये हो, पूरा मंदिर प्रांगण वात्‍सल्‍य से भर गया

एक अलग ही वातावरण मंदिर में बन गया । लोग आपस में चर्चा करने लगे कि अरे इन बाबाजी को देखो, कैसे भगवान की याद में रो रहे हैं । और देखते ही देखते कुछ ही क्षणों में महाराज जी के चारों तरफ दर्शनार्थियों की भीड़ जमा हो गयी ।

कोई उन्‍हें फूल माला पहना रहा है, कोई उनके चरणों में गिर रहा है, कोई मिठाई के डिब्‍बे उनके समक्ष रख रहा है तो कोई रूपये चढ़ाकर उनसे आर्शिवाद मांग रहा है ।
जब इन सब गति‍विधियों की ओर महाराज जी का ध्‍यान गया तब उन्‍होंने अंदर से अपने आप को संभाला । तभी एक दर्शनार्थी बोला कि बाबा मैं आपकी सेवा करना चाहता हूं, आप आदेश करें ।

महाराज जी के मन में तो बस एक ही इच्‍छा थी कि मुझे वृन्‍दावन जाना है तो उन्‍होंने अपने आप को संभालते हुये कहा मुझे वृन्‍दावन पहुंचा दो । वह भक्‍त बोला कि वृन्‍दावन में कहॉ जाना है।


जब प्रेमानंद जी महाराज पर बांके बिहारी जी की कृपा हुई   

अब महाराज जी तो वृन्‍दावन आज पहली बार जा रहे थे, उन्‍हें तो कुछ पता नहीं, कहॉ जाना है, किसके पास जाना है, कहॉ रूकना है, क्‍या करना है । बस उन्‍होंने किसी सत्‍संग में किसी संत से सुन रखा था कि वृन्‍दावन में एक स्‍थान है जिसका नाम है रमण रेती

तो अनायास ही उनके मुख से निकला कि वृन्‍दावन में मुझे रमणरेती जाना है । उस भक्‍त ने साधन की व्‍यवस्‍था करके महाराज जी को मथुरा से विदा किया । उस गाडी़ वाले ने महाराज जी को रमणरेती तिराहा में उतार दिया ।

प्रेमानंद जी महाराज इसे अपना सौभाग्‍य मानते हैं कि मेरा वृन्‍दावन में प्रवेश हुआ तो एकादशी के दिन । अब एकादशी का दिन था, रमणरेती में बहुत से भक्‍त परिक्रमा कर रहे थे ।
अब हमारे महाराज जी के लिए तो सब कुछ नया था ।

इतनी भारी भीड़ को एकसाथ परिक्रमा करते देख उन्‍होंने सोचा कि वृन्‍दावन में ऐसा ही होता होगा ।

Katha Star के प्रिय पाठको, जगतनियंता जगदीश्‍वर के द्वारा यह पहले ही तय किया जा चुका था कि महाराज जी से किसकी और कब और किस स्‍थान पर भेंट करानी है । इसे चाहे विधि का विधान कहें, चाहे नियति कहें । लेकिन मैं इसे साक्षात बिहारी जी की कृपा ही कहूंगा ।

रमणरेती में कुछ देर घूमने के बाद महाराज जी की भेंट होती है संत श्री श्‍याम सखा जी से । उनसे महाराज जी ने निवेदन किया कि मैं बनारस से आया हूं, बिहारी के दर्शन करता चाहता हूं, यदि तीन-चार दिन रहने की व्‍यवस्‍था हो जाती तो बड़ी कृपा होगी ।

संत श्री श्‍याम सखा जी बड़े ही स्‍नेहपूर्वक महाराज जी को संत श्री जगदानंद जी के आश्रम में ले आये । जहॉ महाराज जी ने अपनी पूरी यात्रा के बारे में बताया । श्री जगदानंद जी बड़े की प्रेमी स्‍वभाव के एवं संतसेवी महापुरुष हैं, जिनके आश्रम में आज भी प्रतिदिन पचासों महात्‍मा भोजन प्रसादी पाते हैं और आश्रय पाते हैं ।



तो संत श्री जगदानंद जी के आश्रम में महाराज जी को आश्रय मिला । महाराज जी ने वृन्‍दावन बास एवं ब्रजमंडल दर्शन का खूब आनंद लिया । जगदानंद जी और महाराज जी दोनों का आपस में बड़ा स्‍नेही संबंध हो गया ।

परंतु आलेख के शुरुआत में ही मैंने आपको बता दिया था कि प्रेमानंद जी महाराज एकांतवासी थे । एकांत में वास करना उनका सहज स्‍वभाव था । इसलिए यहॉ आश्रम की व्‍यवस्‍थायें, भीड़भाड़, भक्‍तों का आना-जाना आदि क्रियाकलापों से उन्‍हें ऐसा आभाष हुआ कि उनका एकांत प्रभावित हो रहा है ।

इसलिए महाराज जी पुन: बनारस वापस लौट गये । पर मथुरा से बनारस की जो यात्रा थी, इस यात्रा के दौरान उन्‍हें एक अजब सी बैचेनी महसूस हुयी, उन्‍हें लगा कि शायद यात्रा की थकान के कारण यह बैचेनी हो रही है ।

कुछ दिन बनारस में रहे, अपने वही पुराने नियमानुसार, गंगा स्‍नान, तुलसी घाट, भिक्षा और एकांतवास । पर यह बैचेनी समाप्‍त नहीं हो रही थी, क्‍योंकि यह बैचेनी तो श्रीधाम वृन्‍दावन के छूट जाने से पैदा हुयी थी, तो वह खत्‍म कैसे होती जब तक वृन्‍दावन का बास न मिल जाये ।

खैर, महाराज जी इस बात को जल्‍दी ही समझ गये और बिना देर किये फिर वृन्‍दावन में वहीं रमणरेती के आश्रम में आ गये । तब कहीं जाकर वह बैचेनी समाप्‍त हुयी ।

Premanand ji maharaj ashram address

और तब से लेकर आज तक पीले बाबा संपूर्ण वृन्‍दावन में कई सिद्ध स्‍थानों पर रहते हुये अपनी लाड़ली जू की सेवा कर रहे हैं । महाराज जी वृन्‍दावन में संत कालोनी, अचल बिहार, मदन टेर की कुटिया, लाड़ली कुंज, काली दह एवं रमण रेती जैसे कई सिद्ध स्‍थानों पर निवास कर चुके हैं ।



लेकिन वर्तमान में Shri Hit Radha Keli Kunj Vrindavan Parikrama Marg, Varaha Ghat, opposite to Bhaktivedanta Hospice, Radharaman Colony, Vrindavan, Uttar Pradesh 281121 निवास करते है 


जाने प्रेमानंद जी महाराज ने किस भक्ति मार्ग को चुना?

जब महाराज जी(Premanand ji maharaj) वृन्‍दावन आये तो पूरी तरह से अपरिचित थे । उनका नित्‍य प्रति का नियम था वृन्‍दावन की परिक्रमा करना, बांके बिहारी के दर्शन करना । महाराज जी एक दिन परिक्रमा कर रहे थे, जहॉ एक सखी एक पद का गायन कर रही थी,

जिसकी तरफ अनायास ही पीले बाबा का ध्‍यान चला गया और वे बड़ी आतुरता के साथ उस सखी के भावों को श्रवण करने लगे । पद गायन पूर्ण होने के बाद महाराज जी ने उस सखी से निवेदन किया कि मुझे इसका मतलब बताइये ।

तब सखी बोली कि अगर आप इस पद का भाव समझना चाहते हैं तो इसके लिए आपको श्री राधाबल्‍लभ संप्रदाय से जुड़ना चाहिए । इसके बाद पीले बाबा सीधे पहुंच गये पूज्‍य श्री हित मोहित मराल जी गोस्‍वामी जी (प्रेमानंद जी महाराज के गुरु) की शरण में ।

जिन्‍होंने महराज जी को बडे़ ही स्‍नेहपूर्वक शरणागत मंत्र के साथ श्री राधाबल्‍लभ संप्रदाय में दीक्षा दी ।

कुछ समय पश्‍चात पूज्‍य श्री गोस्‍वामी जी के मार्गदर्शन में ही महराज जी को अपने वर्तमान गुरु पूज्‍य श्री हित गोविंद शरण जी महाराज (Premanand ji Maharaj Guru) का सानिध्‍य प्राप्‍त हुआ ।

पूज्‍य गुरुदेव श्री हित गोविंद शरण जी महाराज सहचरी भाव में रहने वाले प्रमुख संतों में से एक हैं । जिन्‍होंने पीले बाबा को पूर्ण सहचरी भाव एवं नित्‍य विहार रस में दीक्षा दी ।

ऐसे दिव्‍य संतों के आशीर्वाद, स्‍नेह व अनुग्रह के कारण एवं वृन्‍दावन धाम की अपार महिमा के कारण महाराज जी जल्‍द ही श्री बिहारी बिहारिणी जू के चरणों में अटूट श्रद्धा विकसित करते हुये सहचरी भाव में लीन रहने लगे

और हम सब भक्‍तों को अपनी वाणी से श्री लाड़लीजू की कृपा प्रसाद का पान करा रहे हैं ।

जाने क्‍यों प्रेमानंद जी महाराज एकादशी व्रत नही रखते 

महाराज जी(Premanand ji maharaj) कहते हैं कि हम निकुंज की उपासना करते हैं । निकुंज में राधा चरणारविंद प्रधान बात है । इस संप्रदाय में दासी भाव और सहचरी भाव की उपासना है ।

हम श्रीजी की दासी हैं और आठो पहर उनकी सेवकाई में रहते हैं । हम भक्‍त नहीं हैं, संत नहीं हैं । हमारे उपर शास्‍त्र व ग्रंथों का शासन नहीं है, हमारे उपर शासन है वृन्‍दावनेश्‍वरी का । हमारे संप्रदाय में राधा दास्‍य भाव की प्रधानता है ।

हम अपनी स्‍वामिनीजू को प्रतिपल लाड़ लड़ाते हैं । स्‍वामिनीजू को भोग लगाते हैं । उस भोग को हम पाते हैं । एक सीत प्रसाद पाने में करोड़-करोड़ एकादशी व्रत का फल प्राप्‍त होता है ।

”करे एकादशी महाप्रसाद ते दूर, जमपुर बांधे जायेंगे मुख में परी यह धूर ।
कोटि-कोटि एकादशी महाप्रसाद को अंश, इनको या परतीती है जिनके गुरु हरिवंश ।।”

अगर राधाबल्‍लभ जी को भोग लगा और आपने यह तर्क दिया कि ये तो अन्‍न है और आज एकादशी है, एकादशी के दिन अन्‍न नहीं खाउंगा, तो द्वादसी के दिन उसी भोग को आप प्रसाद कैसे कहेंगे, वह तो उस दिन भी अन्‍न ही होगा ।

अन्‍न तो हर दिन होता है पर भोग लगाने के बाद वह अन्‍न नहीं रहता, वह प्रसाद बन जाता है और उसे हम पाते हैं, चाहे एकादशी हो या कोई और तिथि । इससे फर्क नहीं पडता, क्‍योंकि हम उसे अन्‍न नहीं मानते, प्रसाद बुद्धि से ग्रहण करते हैं ।

Premanand ji maharaj

अब आप कहेंगे कि एकादशी के दिन फल का भोग लगाइये । तो भाई क्‍यों लगाइये, हमारी श्रीजी कोई व्रत थोडे ही करती हैं । वह व्रत धारण करके कोई अनुष्‍ठान कर रही हैं क्‍या, जो उन्‍हें हम व्रत करवायें ।

हम रोज श्रीजी को विभिन्‍न प्रकार के पकवानों का भोग लगाते हैं तो एकादशी के दिन भी पकवान का ही भोग लगायेंगे और श्रीजी की जूठन को प्रसाद स्‍वरूप हम ग्रहण करेंगे ।

या फिर श्रीजी को अन्‍न का भोग लगायें और हम फल पायें । ऐसा कैसे हो सकता है, जो हमारी श्रीजी पायेंगी, हम उसे ही प्रसाद रूप में ग्रहण करेंगे । प्रसाद में ना तो अन्‍न देखा जाता है ना फल, प्रसाद केवल प्रसाद होता है ।

इसलिए हमारे यहॉ एकादशी तो क्‍या, किसी भी व्रत की महिमा नहीं है । केवल एक ही व्रत हमारे यहां मान्‍य है –

”ज्ञान धर्म व्रत कर्म इते सब, काहू में नहीं मोय प्रतीति ।
रसिक अनन्‍य निशान बजायो, एक श्‍याम श्‍यामा पद प्रीति ।।”

यही कारण है कि यद‍ि ग्रहण भी पड़ रहा हो तब भी हमारे ”टटिया स्‍थान” में पंगत चलती रहती है
क्‍योंकि हमारी कोई सनातन धर्म की उपासना नहीं है, महाप्रेमरस की उपासना है । हम केवल स्‍वामिनीजू के जूठन के अधीन है, ना कि किसी व्रत, शक्ति या आराधना के ।

भगवान की प्राप्ति कैसे होती है

पीले बाबा(Premanand ji maharaj) कहते है कि जब तक हमारे हृदय में अन्‍य के प्रति दोष बुद्धि है, अन्‍य के प्रति भावना अन्‍य की है अपनत्‍व की नहीं, तब तक भगवत प्राप्ति संभव नहीं है ।

यदि सावधानीपूर्वक कथा कही जाये और कथा सुनी जाये तो कथन व श्रवण मात्र से ही भगवत प्राप्ति हो जायेगी । भगवत यश गान से ही भगवत प्राप्ति संभव है ।
इतना सामर्थ्‍य अन्‍य किसी मार्ग या साधन में नहीं है । भगवत प्राप्ति का सुदृढ उपाय है ”भगवत यश गान”

गोस्‍वामी तुलसीदास जी कहते हैं कि

”चौ‍थी भगति मम गुन गन, करई कपट तजि गान ।”

हमें भगवान के यश का गान कपट व स्‍वार्थ छोड़कर केवल भगवान की प्रसन्‍नता के लिए करना चाहिए, क्‍योंकि ये जनम प्रभु को रिझाने के लिए है ।

चाहे हम ग्रहस्‍थ में रहें चाहे विरक्‍त में रहें, इससे प्रभु को कोई फर्क नहीं पड़ता । हम सब प्रभु के लाडले हैं अगर हमने प्रभु को रिझा लिया तो बात बन गयी ।

लक्ष्‍य केवल प्रभु को रिझाने का रखो तो दुनिया का संपूर्ण वैभव तुम्‍हारे अधीन हो जायेगा । क्‍योंकि संसार का सारा वैभव व सारी माया प्रभु की है ।

हम प्रभु के बच्‍चे हैं । पिता की संपत्ति पर पूरा अधिकार उसके पुत्र का होता है ।  जिस किसी भक्‍त की भावना व भक्‍ति‍ इस स्‍तर पर पहुंच जाती है तो उस अनंत प्रभु की जितनी भी सामर्थ्‍य है, वह सब भक्‍त में प्रकाशित हो जाती है ।

और सच कहा जाये तो इस स्‍तर के जो भक्‍त होते हैं वो भक्‍त होने का नाटक करते हैं, वास्‍तविकता में वे भगवान ही होते हैं । भगवान की लीलायें बुद्धि से नहीं जानी जा सकती, ये तो केवल कृपा से ही जानी जा सकती हैं 

Ekantik Vartalap Premanand Ji Maharaj

एकांतिक वार्तालाप (Ekantik Vartalap) बिल्‍कुल ही नि:शुल्‍क है । जिसमें सम्‍मिलत होकर आप अपने मन की जिज्ञासाओं व समस्‍याओं का समाधान सीधे तौर पर महाराज जी के सम्‍मुख बैठकर कर सकते हैं ।

महाराज जी बड़े की प्रेमभाव से व स्‍नेहपूर्वक भक्‍तों द्वारा पूछे गये सवालों का श्रीजी की प्रेरणा से जवाब देते हैं ।

एकांतिक वार्तालाप में जाने के लिए या प्रश्‍न उत्‍तर करने के लिए यदि आपसे कोई फार्म भरवाया जाता है या कोई शुल्‍क लिया जाता है, यहां तक कि संत सेवा के नाम पर भी यदि कोई आपसे रूपये की मांग करता है तो इसकी सूचना आप महाराज जी को सीधे तौर पर दे सकते हैं

उसको कठोर दंड से दंडित किये जाने का प्रावधान है ।

जब प्रेमानंद जी महाराज को अहंकार हो गया 

वे एक बार वृन्‍दावन में अपने गुरुदेव के साथ दण्‍डवती परिक्रमा कर रहे थे । रास्‍ते में थकान दूर करने के लिए एक पेड़ के नीचे दोनों बैठ गये । तभी गुरू का आदेश हुआ कि माधुकरी (भिक्षा) मांगकर लाओ ।

चूंकि पीले बाबा(Premanand ji maharaj) ब्राम्‍हण जाति के हैं इसलिए संत होने के बाद भी उनके अंदर से उच्‍च जाति का भाव नहीं जा रहा था । शायद इसी के समाधान के लिए उन्‍हें गुरूजी ने माधुकरी मांगकर लाने का आदेश दिया था ।

साथ में यह भी कहा था कि बृजवासियों से कभी भी उनकी जाति मत पूछना, चुपचाप भिक्षा मांगना, वे जो भी बोले सिर नीचा करके सुनते रहना और भिक्षा लेकर ही आना ।

ऐसा इसलिए क्‍योंकि समस्‍त बृजवासी कोई सामान्‍य मनुष्‍य नहीं हैं, ये स‍ब भगवान के पार्षदगण हैं । यदि इनकी जूठन भी मिल जाये तो मानव मात्र का कल्‍याण हो जाये । 

आदेश पाकर प्रेमानंद जी महाराज एक घर जाकर भिक्षा मांगने लगे तो एक महिला ने आकर एक रोटी पर प्‍याज की चटनी रखकर महाराज जी के हाथों में रख दी ।

तभी अचानक उस घर के अंदर से एक सुअर निकला, क्‍योंकि वह महिला अपने घर में सुअर पाले हुयी थी । यह देखकर महाराज जी बहुत ही असहज हो गये और चुपचाप अपने गुरूजी के पास आकर सारी बात बतायी ।

पीले बाबा(Premanand ji maharaj)अपने गुरू से बोले कि गुरुदेव यह रोटी निम्‍न जाति वाले के घर से लाया हूं । गुरूदेव बड़े ही सहज भाव से बोले तो क्‍या हुआ । इस रोटी को हैंडपंप पर धोकर लाओ ताकि प्‍याज की गंध चली जाये उसके बाद और आधी तुम पाओ, आधी मैं पाउंगा ।

पीले बाबा कहते हैं कि उसी दिन से मेरे सारे अहम का एवं उच्‍च जाति की सारी विचारधारा का मेरे अंदर से नाश हो गया ।

सच्‍चा देहाभिमान का नाश बृजवासियों की गाली खाने से और उनकी जूठन खाने से ही होता है ।

वृन्‍दावन के अंदर जो संत माधुकरी मांगते हैं, उसका मुख्‍य कारण यही है । बृजवासियों को इसका कोई अपराध भी नहीं लगता, क्‍योंकि वे सभी भगवत पार्षद हैं ।

प्रेमानंद जी महाराज किडनी (Premanand Ji Maharaj Kidney) 




शायद आपको यह जानकारी होगी कि महाराज जी(Premanand ji maharaj) की दोनों किडनियॉ विगत 10-15 वर्षों से काम नहीं कर रही हैं । पर आज हम आपको पूरा सच बताने जा रहे हैं जिसे जानकर आप बाकई हैरान रह जायेंगे ।

महाराज जी को पॉलीसिस्टिक किडनी रोग Ploycystic Kidney Disease है जिसे संक्षिप्‍त में PKD कहा जाता है । जो कि किडनी की एक वंशानुगत बीमारी है । यह माता-पिता से संतान में जीन्‍स के जरिये आती है ।

इस बीमारी में किडनी के उपर सिस्‍ट बन जाते हैं, जो की तरल उत्‍पाद से भरे होते हैं । किडनी पर बने यह सिस्‍ट बहुत छोटे आकार से लेकर बडे आकार तक हो सकते हैं और इनकी संख्‍या लाखों में हो सकती है ।

स्थिति गंभीर होने पर यह सिस्‍ट न केवल किडनी के उपर बल्कि किडनी के भीतरी हिस्‍सों में भी हो सकते हैं । अगर इनका सही समय पर उपचार न किया जाए तो इससे किडनी का आकार सामान्‍य से ज्‍यादा बडा होने लगता है, जिससे किडनी खराब हो सकती हैं और कभी-कभी किडनी फटने का भी खतरा रहता है ।

किडनी का यह रोग भले ही संतान को उसके माता पिता से जीन्‍स के द्वारा मिलता है, लेकिन इसके लक्षण 30-35 की उम्र के बाद ही दिखाई देते हैं ।

PKD से ग्रसित कुछ लोग 55 से 65 वर्ष की आयु के बीच किडनी की बीमारी के अंतिम चरण में पहुंच जाते हैं । वहीं कुछ लोगों में यह हल्‍के रूप में ही रह जाती है और वह कभी भी किडनी की बीमारी के अंतिम चरण तक नहीं पहुंचते ।

इस बीमारी के कारण रोगी को कई शारीरिक कष्‍टों का सामना लगातार करना पडता है, लेकिन किडनी फेल्‍योर हो जाने के कारण रोगी की हालत और भी ज्‍यादा खराब हो जाती है । जिसके कारण रोगी को डायलिसिस या किडनी ट्रांसप्‍लांट की जरुरत पड़ जाती है ।

Katha Star के प्रिय पाठको, आपकी अपनी बेव साइट कथा स्‍टार के माध्‍यम से पीले बाबा की संपूर्ण जीवन यात्रा को जानने के बाद आप भी शायद महाराज जी को किडनी देने के लिए भावातुर हो रहे होंगे, क्‍योंकि हमारे पीले बाबा के हजारों भक्‍त उन्‍हें किडनी देने के लिए तैयार हैं ।

क्‍या महाराज जी इसे स्‍वीकार करेंगे या नहीं । मैं आपकी इस शंका का भी समाधान करने की कोशिश करता हूं ।

महाराज जी का कहना है कि मुझे किसी की भी किडनी की आवश्‍यकता नहीं है । मैं पूरी तरह स्‍वस्‍थ हूं । शरीर को जितने दिन चलना होता है और जैसे चलना होता है, चलता है ।

मैं यह बर्दास्‍त ही नहीं कर सकता कि किसी दूसरे के शरीर को कष्‍ट देकर उसके पेट को काटकर किडनी निकाली जाये और मेरे शरीर में लगायी जाये ।

मेरा जीवन इस समाज के कल्‍याण और सुख के लिए है । मैं अपने सुख के लिए किसी को कष्‍ट नहीं दे सकता । इससे अच्‍छा है कि मैं मर जांउ ।

इस रोग के बहाने मुझे श्रीजी का दुलार मिलता है । मेरा ऐसा मानना है कि यह रोग मुझपर कृपा कर रहा है, क्‍योंकि आज मैं अपने आप में असहाय हूं । मैं जो कुछ भी हूं श्रीजी के बल पर हूं ।

Premanand ji maharaj

जिस इंसान की किडनी फेल है वह क्‍या साधना कर सकता है । पर रोज भजन व सत्‍संग हो रहा है, श्रीजी करवा रही हैं, यह उन्‍हीं का सामर्थ्‍य है, मैं तो सामर्थ्‍यहीन हूं ।

श्रीजी का सामर्थ्‍य भी कैसा, कि आप मुझे देखकर यह नहीं कह सकते कि मैं किडनी फेलियर हूं । मेरे पूरे शरीर में 24 घंटे दर्द रहता है, पर मैं कभी दर्द से कराहता नहीं हूं ।

मेरा चेहरा कभी उदास नहीं दिखता । मैं हमेशा हंसता मुस्‍कुराता रहता हूं । इस रोग की स्थिति‍ में भी मैं रोज रात्रि 11 बजे सोता हूं और सुबह 03 बजे उठ जाता हूं ।

और रही बात ताकत की तो हमने कभी अपने आप को शक्तिहीन अनुभव ही नहीं किया, आज भी कुश्‍ती में अपने से दोगुने शरीर वाले व्‍यक्ति को दो मिनट में पटक सकता हूं । यह है श्रीजी का दुलार और सामर्थ्‍य ।

अगर कोई मुझे किडनी देना ही चाहता है तो इससे कोई लाभ नहीं है, क्‍योंकि अगर श्रीजी को मुझसे जगत मंगल का यह कार्य करवाना है तो यही खराब किडनी ही चलती रहेगी ।

और यदि वो मुझे बुलाना चाहती हैं तो आज मैं किडनी बदलवा लूंगा और अगले की क्षण शरीर छोड़ दूंगा । तब क्‍या करोगे । चाहे मुझे किडनियों की माला पहना दो, कुछ होने वाला नहीं है ।
जब मेरी आयु 35 वर्ष के लगभग हुयी तो उस समय तक मेरे पेट में बहुत ज्‍यादा पीड़ा बढ़ गयी थी, जिस कारण मैं राम कृष्‍ण मिशन में जांच कराने गया, तो डॉक्‍टर मुझसे बोले कि

बाबा, मरीज की बीमारी के बारे में हम उसके परिवार वालों को बताते हैं, मरीज को कभी नहीं बताते पर बाबा तुम अकेले आये हो, तुम्‍हारे परिवार में कोई है नहीं, बाबाजी हो, भजन करते हो, इसलिए हम तुम्‍हें ही बता देते हैं

तुम्‍हारी दोनों किडनियॉ आधे से ज्‍यादा खराब हो चुकी हैं और कुछ ही सालों में पूरी तरह से खराब हो जायेंगी, तुम्‍हारे पास 2 से 3 साल का समय है और ज्‍यादा से ज्‍यादा 4 से 5 साल । इससे अधिक नहीं ।

तुम बाबाजी हो, भजन करते हो इसलिए सच बता दिया, जाओ भजन करो, अब कुछ नहीं हो सकता । तब मैंने सोचा कि शायद यही भगवान की मर्जी हो, मुझे इसमें क्‍या, मैंने जाने की तैयारी कर ली । जितना समय है, मस्‍ती से भजन करेंगे ।

पर आप देखो तब से आज 18-19 साल हो गये, कुछ नहीं बिगड़ा । यह तो श्रीजी की कृपा है, जब तक इस मशीन को श्रीजी करेंट दे रही हैं, यह मशीन काम कर रही है, जहॉ उन्‍होंने करेंट देना बंद किया, मशीन काम करना बंद कर देगी ।

मेरी दिनचर्या देखकर कई संतों को तो विश्‍वास ही नहीं होता कि यह आदमी डायलिसिस पर जीवित हैकई पूज्‍य संत तो एकांत में मुझसे पूछा करते हैं कि बाबा क्‍या सच में तुम्‍हारी किडनी फेल है, कि बस किडनी फेल होने का नाटक कर रहे हो ।

तब मैं उन्‍हें अपने वस्‍त्र उतारकर सीने में डली हुयी पाइप दिखाता हूं तब जाकर उन्‍हें विश्‍वास होता है ।

पीले बाबा(Premanand ji maharaj) कहते हैं कि मैं अपनी आयु से नहीं चल रहा हूं, किडनी से नहीं चल रहा हूं, मानुषिक शक्ति से नहीं चल रहा हूं, मैं अपनी लाडली जू की मुस्‍कुराहट से चल रहा हूं ।

वो जब तक यहां चलाना चाहती हैं तो यहां चल रहा हूं, जब वहॉ बुला लेगी तो वहॉ चलने लगेंगे ।

जाने का सबका समय निश्चित है । जब मेरा समय आयेगा तो जाना ही पड़ेगा कोई नहीं रोक सकता । और जब तक मेरे जाने का समय नहीं आया तो यहॉ मेरा कुछ नहीं बिगड़ सकता ।

प्रेमानंद जी महाराज की दवा कौन कराता है ?

महाराज जी(Premanand ji maharaj) बताते हैं कि आज से लगभग 10 वर्ष पूर्व मेरी ऐसी दशा हुआ करती थी कि मैं वही खा सकता था, जो मांग कर लाता था । यदि किसी दिन भिक्षा नहीं मिलती तो कुटिया में भूखे पड़े रहते ।

उस समय भी मेरी किडनियॉ खराब थी, दवाइयों के लिए पैसे की आवश्‍यकता रहती थी । चार सज्‍जनों के घर ऐसे थे, जिनसे मुझे नियमित रूप से पैसा मिल जाया करता था तब कहीं जाकर 1800 रूपये की दवाई आती थी ।

मेरी दोनों किडनियॉ फेल है, डायलिसिस होता है, लाखों रूपये का खर्च है, मांगने से कोई इतना पैसा देता क्‍या, इतना पैसा कहॉ से आता, पर ये सब लाड़ली जी की कृपा है, सैकड़ों लोग सेवा में हैं, सब व्‍यवस्‍थायें हो रही हैं ।

जब तक मैं अपने बल से सोचता था तो मांगने जाना पड़ता था, लेकिन जब से अपने प्राण समर्पित कर दिये, यह मान लिया कि हम तो गरीब बाबाजी हैं, क्‍या है हमारे पास न एक रूपया ना एक आदमी । तब से भगवान अपना बच्‍चा समझकर सारी व्‍यवस्‍थायें कर रहे हैं ।

जब प्रेमानंद जी महाराज को आश्रम से निकाल दिया गया  

मैं जिस किसी भी आश्रम में रुकता था तो जैसे ही आश्रमवालों को पता चल जाये कि इसकी तो किडनी खराब है तो वे सोचते कि यदि ये यहॉ रहा तो दवाई करानी पडेगी, पैसा खर्च होगा, इसकी सेवा करनी पडेगी और यदि यहीं मर गया तो । इसलिए पता लगते ही मुझे तुरंत आश्रम से निकाल दिया जाता

और मैं भी समझ जाता कि मेरा इस दुनिया में कोई है ही नहीं, इसलिए मेरे साथ ऐसा व्‍यवहार हो रहा है ।

आज आप लोग जो कुछ देख रहे हो ना, यह सब लाडली जू का है । मेरा एक रूपया भी इसमें नहीं है । इसी वृन्‍दावन की बात बताउं तो कडाके की ठंड में गेहूं के बोरे सिलकर उन्‍हें ओढ़कर रातें गुजारी हैं मैंने ।

यह दशा थी मेरी, कुछ नहीं था मेरे पास । यदि मुझे पॉच रुपये की भी जरूरत होती तो किसी की तरफ देखना पड़ता था, मांगना पड़ता था । यदि आज भी मेरी वही स्थित होती तो पड़े-पड़े सड़ जाता, कोई पूछने वाला नहीं था ।

अगर श्रीजी ने यह सब व्‍यवस्‍था ना की होती तो ये सब कुछ ना होता । आज सब उनकी ही कृपा है ।

सामान्‍य दृष्टि से आप देखोगे तो लगेगा सब जादू से हो रहा है । ढाई-तीन सौ लोगों का बाल भाग, फिर राजभोग, फिर शयनभोग, दूध की व्‍यवस्‍था, विजली व्‍यवस्‍था, सफाई व्‍यवस्‍था, सब अपने आप हो रहा है ।

Premanand ji maharaj

यहॉ आश्रम में किसी को कोई टेंशन नहीं है । कहॉ से राशन आ रहा है, कहॉ से दूध आ रहा है, कहॉ से दवाइयॉ आ रही हैं, कैसे समय से सब बन रहा है, किसी को कुछ पता नहीं, कोई टेंशन नहीं, सब श्रीजी व्‍यवस्‍था कर रही हैं ।

मैंने(Premanand ji maharaj) १३ साल की उम्र में घर छोड़ दिया था, अकेला था, कोई नहीं था मेरे पास, पर वर्तमान में आश्रम के सभी जवान बच्‍चे जितने भी शरणागत हैं,

मुझे बहुत प्‍यार करते हैं, सब मुझे अपनी गोद में रखते हैं, इतना स्‍नेह करते हैं, अगर एक पानी पिला रहा है तो दूसरा मुंह पोंछ रहा है, तीसरा पंखा डुला रहा है ।

ये सब कौन हैं, ये सब भगवान के रूप हैं, भगवान ही अनेक रूपों में आकर मुझे दुलार कर रहे हैं तो ये जीवन चल रहा है ।

इसलिए ऐसा कभी नहीं सोचना चाहिए कि कल हमारा क्‍या होगा । जिस परमपिता ने हमारी आज की व्‍यवस्‍था की है, वह हमारी कल की भी व्‍यवस्‍था करेगा ।

या रहस्‍य रघुनाथ को वेग न जाने कोय ।
जो जाने रघुपत कृपा, तो सपनेहु मोह न होय ।।

यही वह मर्म है, जिसे ब्रम्‍हज्ञानीजन, संतजन, महात्‍माजन जान गये, तो जीवन से मुक्‍त हो गये । और संसारी लोग नहीं जान पाये तो आपस में एक-दूसरे पर लाठी चला रहे हैं कि मेरे भगवान बड़े हैं, तुम्‍हारे भगवान छोटे हैं ।

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हमें उम्‍मीद है कि Premanand ji maharaj Biography आपको जरूर ही पसंद आया होगा, क्‍योंकि हमारी टीम ने ये संपूर्ण जानकारी एकत्रित करने में अपना सर्वश्रेष्‍ठ प्रयास किया है । इसलिए आपके मन में इस लेख को लेकर क्‍या विचार हैं और हमारे लिए क्‍या सुझाव हैं, हमें कमेंट करके जरूर बतायें ।

आने वाले दिनों में ऐसे ही आध्‍यात्‍मिक लेख पढ़ने के लिए katha star जी से जुड़े रहें । प्रेमानंद जी महाराज की पूरी जानकारी लेख को अंत तक पढ़ने के लिए आपका धन्‍यवाद ।



Q. प्रेमानंद जी महाराज आश्रम पता

Ans. Shri Hit Radha Keli Kunj Vrindavan Parikrama Marg, Varaha Ghat, opposite to Bhaktivedanta Hospice, Radharaman Colony, Vrindavan, Uttar Pradesh 281121

Q. प्रेमानंद जी महाराज कौन है

Ans. महाराज राधावल्‍लभ संप्रदाय एक महान संत है जो वर्तमान में वृदावन में रहते है

Q. Shri premanand govind sharan ji maharaj age

Ans. Aprox 55 years

Q. Virat kohli vrindavan baba name

Ans.Premanand ji maharaj

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