J Krishnamurti life history in hindi | जे. कृष्णृमूर्ति के जीवन की रहस्‍यमयी घटना

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J Krishnamurti एक ऐसे महान संत का नाम है, जिन्‍होंने मानव जगत को भगवान से मिलने का बहुत ही सरल मार्ग बताया है।

वह जो कुछ भी इस जगत को दे गये हैं, उसकी कीमत नहीं लगाई जा सकती है।



वैसे तो कृष्‍णमूर्ति के जीवन से सम्‍बन्धित कई ऐसी घटनायें हैं, जिन्‍हें आपको जानना चाहिये, लेकिन इस लेख के माध्‍यम से आज जो घटना हम आपको बताने जा रहे हैं,

J Krishnamurti life history

उसे पढ़कर आप अपने जीवन में अद्भुत सकारात्‍मक बदलाव ला सकते हैं।

यह कहानी बहुत कुछ सिखाने वाली है, इसलिये आप इस कहानी को अंत तक जरूर पढ़ें।

कथा स्‍टार Katha Star की टीम आपके लिये ऐसी बहुत सी प्रेरक कहानियां लाने वाली है,

जिससे आप अपने जीवन को रूपातंरित कर पायेंगें। तो चलिये देर किस बात की, कहानी की शुरूआत करते हैं-


जे. कृष्णृमूर्ति के जीवन की रहस्‍यमयी घटना

कहानी शुरू होती है लंदन में रहने वाली ऐनी बेसेंट से, ऐनी बेसेंट इंग्‍लैंड के राजकुल में पैदा हुई।

सुसंस्‍कारों में पली हुई और अत्‍यंत रूपवती ऐनी बेसेंट का विवाह एक पौंगा पंडित के साथ हुआ।

लेकिन कुछ समय बाद ऐनी बेसेंट ने पौंगा पंडित से रिश्‍ता तोड़ लिया और वह अकेली हो गयी।

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इस बात की खबर जब लोगों को लगी कि ऐनी ने अपने पति से रिश्‍ता तोड़ लिया है तो उसे बडे-बडे अमीर लोग शादी के लिये प्रस्‍ताव भेजने लगे।

लेकिन सबसे आश्‍चर्य की बात तो तब हुई जब उसके पास उस समय के सबसे बडे आदमी बर्नाड शॉ का भी खत शादी के लिये आया।



पर ऐनी ने उसके भी प्रस्‍ताव के हंसते हुये ठुकरा दिया। इसलिये कहा जाता है कि जो सितारों के लिये जन्‍मा है वह धरती पर कैसे रह सकेगा।

और इसी बीच ऐनी के हाथ एक ऐसी अद्भुत पुस्‍तक लगी, जिसका नाम था ‘द सिक्रेट डॉक्‍ट्रेन’।

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उस पुस्‍तक ने ऐनी बेसेंट के जीवन में मानो आग लगा दी।

लेकिन आप इस कहानी को पढ़ने से पहले एक बात हमेशा ध्‍यान रखें कि जब आप किसी महापुरूष के जीवन में उतरते हैं,

तो वहॉ से आपको रहस्‍यमय घटनाओं का पता चलता है, लेकिन आपको कुछ पाने के लिये महापुरूष के जीवन मे प्रेमपूर्वक उतरना होगा,

अन्‍यथा आपके हाथों में सिर्फ शब्‍द लगेंगे, उनके प्राण नहीं आ पायेंगे।

जो पुस्‍तक ऐनी के हाथ लगी, उसकी लेखिका उस समय की महानतम योगिनी रूस में जन्‍मी मैडम हेलिना थी।

मैडम हेलिना की एक बहुत प्रसिद पुस्‍तक है, जिसका नाम है ‘सेवन डोर ऑफ ऐक्‍सटिसी’ जिसका अर्थ है समाधि के सप्‍त द्वार।

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रूस में जन्‍मी मैडम हेलिना रूस से हिमालय आती हैं और उधर  ‘द सिक्रेट डॉक्‍ट्रेन’ को पढने के बाद ऐनी भी लंदन से हिमालय मैडम हेलिना से मिलने आ जाती हैं

हिमालय में दो योगिनीयों का मिलन

और हिमालय में इन दो योगिनीयों का मिलन हुआ। जब ये दोनों महिलायें मिली तो उस समय लोगों ने बहुत विरोध किया और इन दोनो को फ्रॉड कहा।

इन दोनों ने मिलकर यह तय किया कि धरती को एक विश्‍व शिक्षक की जरूरत है, तो क्‍यों न इस पर कुछ काम किया जाय।

मैडम हेलिना को पराशक्तियों में महारत हासिल थी, उसे अशरीरी आत्‍माओ से संपर्क करने की कला पता थी।

ऐनी बेसेंट को मैडम हेलिना ने हिमालय के तीन योगियों से मिलाया। उन तीनो योगियों को किसी भी शरीर में प्रवेश करने की महारत हासिल थी।

इन तीनो योगियों का नाम कुमुति, मौर्य और ज्‍वालाकुंड था। इन तीन योगियों ने भी कहा था कि इस समय धरती को एक विश्‍व शिक्षक की जरूरत है



और इस समय मैत्रेय की आत्‍मा धरती पर जन्‍म लेने के लिये आतुर है।

आपकी जानकारी के लिये बता दें कि महात्‍मा बुद्ध ने अपना शरीर त्‍यागने के समय कहा था कि मैं दोबारा इस धरती पर मैत्रेय के नाम से जन्‍म लूंगा।

इन तीन योगियों के कथानानुसार गौतम बुद्ध की आत्‍मा को गर्भ खोजते-खोजते 2500 वर्ष हो गये हैं,

पर उस आत्‍मा को ऐसा गर्भ प्राप्‍त नही हो पा रहा है, जिससे वह दोबारा शरीर धारण कर सके।

इसलिये इस आत्‍मा को किसी ना किसी के शरीर में प्रवेश कराने के लिये किसी व्‍यक्ति को तैयार करना जरूरी है, नहीं तो यह आत्‍मा अंतरिक्ष में विलीन हो जायेगी।  

जे. कृष्णृमूर्ति का चुनाव

इन तीन योगियों ने ध्‍यान के द्वारा उस समय धरती पर जो भी जागृत लोग थे, उनको अपने विचारों को संप्रेषित करना शुरू किया।

जब विचारों का संप्रेषण जागृत लोगों तक पहुंचने लगा तो उस समय एक महानतम व्‍यक्ति योगियों की मदद के लिये निकल कर सामने आया,

जिसका नाम था मिस्‍टर अलकॉड, जो अमेरिका का रहने वाला था।

कर्नल अलकॉड के आने के बाद मैत्रेय की आत्‍मा को शरीर में प्रवेश कराने के लिए एक बहुत बडा संगठन बना।

जिसका नाम हुआ ‘थियोसॉफिकल सोसाइटी’ और इसका मुख्‍यालय अमेरिका में बना।

लेकिन कुछ कारणों से इसका मुख्‍यालय अमेरिका से भारत में स्‍थानान्‍तरि‍त किया गया

और दक्षिण भारत के अडियार में स्‍थापति किया गया, जो चेन्‍नई से 150 किलोमीटर दूर है।

अब खोज शुरू हुई उस चेतना की, जहां पर यह काम होगा।

उन तीनों योगियों के संप्रेषण से प्रभावित होकर एक व्‍यक्ति और आया, जिसका नाम था लीप पीटर।

लीप पीटर थियोसॉफिकल सोसाइटी में शामिल हो गया। लीप पीटर के पास एक बहुत अद्भुत प्रतिभा थी,

जिसके माध्‍यम से वह किसी भी व्‍यक्ति को देखकर उसके पिछले सभी जन्‍मों के बारे में जान जाता था।

एक दिन लीप पीटर समुद्र के किनारे टहलने के लिये गये, जहां उन्‍होंने एक बच्‍चे को बैठे हुये देखा, जो अत्‍यन्‍त जर्जर फटे कपड़े पहने हुये था।

लीप पीटर ने उस बच्‍चे का आभा मण्‍डल देखा तो उसके आभा मण्‍डल में इतनी पवित्रता दिखाई दी कि

लीप पीटर हैरत में पड़ गये कि जिस शरीर या बालक को हम पूरे विश्‍व में खोज रहे हैं वह हमारे बगल में बैठा है।

मित्रों उस बालक का नाम जे. कृष्‍णमूर्ति था।

जे. कृष्णृमूर्ति का परिचय

J Krishnamurti life history

Katha Star के प्रिय पाठकों, अब हम आपको J Krishnamurti के परिवार के बारे में थोडा परिचय दे देते हैं, फिर कहानी को आगे बढ़ायेंगे।

जे. कृष्‍णमूर्ति आठ भाई-बहन थे, जिनमें कृष्‍णमूर्ति आठवें नंबर की संतान थे।

भगवान कृष्‍ण भी, माता देवकी की आठवीं संतान थे इसीलिए इनका नाम भगवान कृष्‍ण के नाम पर कृष्‍णमूर्ति रखा गया।

कृष्‍णमूर्ति के पिता तृतीय वर्ग के सरकारी कर्मचारी थे, जिनका नाम श्री सीतारमइया था तथा उनकी माता का नाम श्रीमती संजीवमइया था।

जब कृष्‍णमूर्ति J Krishnamurti की उम्र महज 10 वर्ष थी, तभी उनकी मां का देहांत हो गया था और कृष्‍णमूर्ति अपनी जिस बडी बहन से बहुत प्रेम करते थे, उनका भी देहांत उसी समय हो गया था।

कृष्‍णमूर्ति अपनी किताब में यह लिखते हैं कि उन्‍हें पहली बार आठ साल की उम्र में पराविज्ञान का अनुभव, उनकी बडी बहन जिसे वह बहुत प्‍यार करते थे, उसके अंतिम संस्‍कार के समय हुआ था।

वो अपनी किताब में लिखते हैं कि जब वो अपनी मां के साथ बडी बहन के चिता के पास गये तो वहां उन्‍होंने देखा कि उनकी बडी बहन, मां के पास बैठी बातें कर रही है।

इस घटना को देख छोटे से कृष्‍णमूर्ति ने अपनी मां से पूछा कि मां, जो बहन अब जल गई है, वह आपके पास बैठी बाते कैसे कर रही है,



इस बात को सुनकर उनकी मां मुस्‍कराई और धीरे से कृष्‍णमूर्ति के सिर पर हाथ सहला दिया।

कृष्‍णमूर्ति बचपन में शिक्षा में बहुत कमजोर थे, जब वो स्‍कूल पढ़ने जाते तो वहां शिक्षक के द्वारा पूछे गये प्रश्‍न का जवाब न देने के कारण कृष्‍णमूर्ति को मार पडती थी

और कभी-कभी तो शिक्षक दण्‍ड देने के रूप में कृष्‍णमूर्ति को कक्षा के बाहर खडा रहने के लिये बोलते।

लेकिन कृष्‍णमूर्ति J Krishnamurti ऐसे खडे होते, जैसे कि अब वह सब भूल गये हों और

एक बार तो ऐसा हुआ कि सुबह 10 बजे कृष्‍णमूर्ति को दण्‍ड के रूप में खडे होने का आदेश दिया गया तो कृष्‍णमूर्ति कक्षा के बाहर जाकर चुपचाप खड़े हो गये।

दोपहर 2 बजे स्‍कूल की छुट्टी हो गयी, सब बच्‍चे अपने-अपने घर चले गये।

स्‍कूल के शिक्षकों व छात्रों में से किसी ने भी कृष्‍णमूर्ति पर ध्‍यान नहीं दिया,

कृष्‍णमूर्ति भी खड़े-खड़े दूसरी दुनिया में खो जाया करते थे तो उन्‍हें भी अपने घर जाने का ध्‍यान न रहा और शाम 6 बजे तक कृष्‍णमूर्ति खडे रहे।J Krishnamurti life history

उधर जब उनके पिता ने देखा कि अभी तक कृष्‍णमूर्ति स्‍कूल से घर वापस नही आया, तो वो अपने बडे बेटे यानि कृष्‍णमूर्ति के बडे भाई नित्‍यानंद को स्‍कूल में जाकर उसका पता लगाने के लिए भेजा।

जब नित्‍यानंद स्‍कूल गये तो वहॉ देखा कि कृष्‍णमूर्ति उसी मुद्रा में कक्षा के द्वार पर खडे हैं

और मानो कृष्‍णमूर्ति किसी दूसरे जगत में खोये हुये हैं।

जब नित्‍यानंद ने कृष्‍णमूर्ति J Krishnamurti को हिलाया डुलाया और कहा कि अरे शाम हो गई है, घर चलो, सब तुमको ढूढ रहे हैं।

तब कृष्‍णमूर्ति को होश आया और वे अपने भाई के साथ घर आ गये। कृष्‍णमूर्ति की बचपन से ही ऐसी स्थित थी।

तो ये था जे. कृष्‍णमूर्ति का बचपन। इसे पढ़कर आप इतना तो समझ ही गये होंगे कि यह बालक कोई साधारण बालक नहीं था और ऐसे बच्‍चे कई हजार सालों में एक बार पैदा होते हैं।

अब हम अपनी आगे की कहानी को शुरु करते हैं-

लीप पीटर ने कृष्‍णमूर्ति के पिछले जन्‍मो में देखा कि वह पिछले 11 वर्षो से हमारे साथ है और उस पर हमारा बहुत स्‍नेह है।

उधर जब थियोसॉफिकल सोसाइटी का प्रचार प्रसार हुआ तो कृष्‍णमूर्ति के पिता भी इस संस्‍था के सदस्‍य बन गये

और फिर वो अडियार में आकर रहने लगे, जहां कृष्‍णमूर्ति का मैत्रेय की आत्‍मा के लिये चुनाव हुआ।

और फिर मैत्रेय की आत्‍मा को प्रवेश कराने के लिये तैयारी शुरू हो गई।

कृष्‍णमूर्ति J Krishnamurti को तैरना सिखाया गया, टेनिश सिखाया गया और इनके दांत टेढे-मेढे थे,

जिसको डॉक्‍टर के पास ले जाकर सही कराया गया और इसके अलावा भी कृष्‍णमूर्ति को सब प्रकार की ट्रेनिंग दी गई,

इसमें सबसे बडे आश्‍चर्य की बात यह है कि जितना श्रम गुरूओं ने कृष्‍णमूर्ति के साथ किया,

उतना श्रम इस शदी में शायद ही किसी गरू ने अपने शिष्‍यों के साथ किया गया हो।

रोज रात को आठ बजे ऐनी बेसेंट और लीप पीटर, कृष्‍णमूर्ति J Krishnamurti को हिमालय ले जाते और वहां तीनों गुरूओं से बातचीत होती थी

और कृष्‍णमूर्ति को आदेश था कि जो घटना तुम्‍हारे साथ रात को घटती है, उसको तुम सुबह एक डायरी में लिखना,

परंतु कृष्‍णमूर्ति को ज्‍यादा लिखना तो आता नहीं था इसलिये उनकी बातें ऐनी बेसेंट लिखती थीं। वही बाद में जाकर पुस्‍तक के रूप में प्रकाशित हुईा

आपको यह जानकर आश्‍चर्य होगा कि यह पुस्‍तक कृष्‍णमूर्ति की प्रसिद्ध पुस्‍तकों की लिस्‍ट में आती है।

जिसका नाम ‘एट द फीट ऑफ द मास्‍टर’ है और इस पुस्‍तक का दुनिया की 40 भाषाओं में अनुवाद किया गया है।

दोस्‍तों, मेरा सुझाव यही रहेगा कि अगर आपने अभी तक इस पुस्‍तक को नहीं पढा है, तो इसे जरूर पढें,

J Krishnamurti life history

   

क्‍योंकि इस पुस्‍तक में उन्‍होंने बताया है कि उन तीन योगियों से वे कैसे बातें किया करते थे।

अब थियोसॉफिकल सोसाइटी की पूरी तैयारी हो चुकी थी, मैत्रेय की आत्‍मा को प्रवेश कराने के लिये।

30 हजार लोग ओमेन कैम्‍प में जमा हुये और दुनिया के लोगों ने अपने रेडियो को ऑन कर दिया,

ताकि वे कृष्‍णमूर्ति को मैत्रेय की आत्‍मा को स्‍वीकार करने के कार्यक्रम को सुन सकें।

जे. कृष्णृमूर्ति के सत्‍य वचन

जब आत्‍मा को प्रवेश कराने की प्रक्रिया शुरू हुई तो कृष्‍णमूर्ति ने कहना शुरू किया कि सत्‍य का कोई बंधा बंधाया मार्ग नहीं होता।

सत्‍य किसी का अनुगमन नही करता। सत्‍य की यात्रा व्‍यक्ति की अकेली की यात्रा होती है।

सत्‍य का कोई संगठन नही होता है। संगठित करते ही सत्‍य मर जाता है।

और मैं कभी नही चाहूंगा कि आने वाली मनुष्‍यता को एक संगठन का रूप देकर एक पिजंरे में बांध कर रखूं।



मैं यह भी देखता हूं कि अगर मैं मैत्रेय की आत्‍मा को स्‍वीकार करता हूं तो मुझे मालूम है कि

हजारों लाखों सोये हुये बुद्ध के भक्‍त मेरे चरणों में आकर लोटने लगेंगे, जो मेरे किसी मतलब का नही है

और जो मैं चार-पांच लोगों के लिये धरती पर आया हॅू, उनके लिये मैं कुछ काम नही कर सकूंगा।

एक भीड़ जमा हो जायेगी मेरे पास और मैं जो कार्य करना चाहता हूं, वह नहीं कर पाउंगा।

इतने बडे सम्राज्‍य को, इतनी बडी भीड़ को एक क्षण में कृष्‍णमूर्ति ने ठोकर मार दी और परमात्‍मा को उपलब्‍ध हो गये।

वहां बैठी भीड़ आश्‍चर्य में पड़ गयी। इस प्रकार कृष्‍णमूर्ति J Krishnamurti ने संगठन को अस्‍वीकार कर दिया और कुछ दिन बाद संगठन टूट गया।

इस घटना से सीखने योग्‍य बात

दोस्‍तों यह बिल्‍कुल  निश्चित बात है कि धर्म्‍ कभी भी संगठित नहीं हो सकता।

धर्म एक प्रेम की तरह है, जैसे प्रेम व्‍यक्तिगत होता है, जिसकी कोई परिभाषा नही होती है।

ऐसे ही महानतम प्रेम भी व्‍यक्तिगत होता है, जिसमें भक्‍त का भगवान से नाता होता है।

संगठन भगवान तक पहुंचने के मार्ग बहुत जटिल बना देते हैं, जिससे शायद ही उस मार्ग से भगवान को प्राप्‍त कर पाये।

इसलिये यदि आप भगवान को महसूस करना चाहते हैं तो आप सरल बनना सीखियें।

मुझे आशा है कि आप इस लेख को पढ़कर बहुत कुछ सीखे होंगे।

आगे मेरा प्रयास यही रहेगा कि मैं आपको ऐसी ही जानकारियों से अवगत कराता रहूँ, जिससे आपके जीवन में सकारात्‍मक बदलाव आ सकें।

इस लेख में बस इतना ही, अगर आपके मन में कोई सवाल है तो आप हमें कमेंट करें या फिर ईमेल के माध्‍यम से सम्‍पर्क करें।

J Krishnamurti life history in hindi लेख को अंत तक पढ़ने के लिये आपका धन्‍यवाद।




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