Delta Plus Variant Kya Hai | डेल्टा प्लस वैरीअंट क्या है और इससे कैसे बचा जाय

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आज के समय में कोरोना(Delta Plus Variant), मनुष्‍य जाति के सामने सबसे बडी चुनौती के रूप में उभरा है, जिसका हम सभी को डटकर मुकाबला करना है और कोरोना को हराना भी है।



लेकिन कोरोना को हराने के लिये सबसे पहले कोरोना के स्‍वरूप के बारे में जानना होगा। इसलिये आज इस लेख में हम आपको कोरोना के डेल्‍टा प्‍लस वेरियेंट के बारे में विस्‍तृत जानकारी देंगे।

Delta Plus Variant Kya Hai

जिसे पढ़कर आप पूरी तरह से समझ जायेंगे कि आखिर  Delta Plus Variant Kya Hai? और यह कितना खतरनाक है। तो सबसे पहले यह जान लेते है कि वेरियेंट क्‍या होता है-  

वेरियेंट क्‍या होता है | what is variant virus

कोरोना वायरस चीन के बुहान शहर से निकला था। जैसे-जैसे यह दुनिया के कई देशों में फैलता गया तो इसमें कई प्रकार के बदलाव आते गये।

और इस समय दुनिया में अलग-अलग लक्षणों के साथ कोरोना वायरस लोगों में फैल रहा है, जिनकी वैज्ञानिकों ने अलग-अलग पहचान की है।

तो शुरुआत से लेकर अब तक कोरोना वायरस में जो बदलवा हुये हैं उसे म्यूटेशन या वेरियेंट कहा जाता है।



जब कोरोना की शुरुआत हुयी थी तब उसे सिंगल कोरोना कहा गया था। एक वायरस से दूसरा वायरस बनने की प्रक्रिया को रेपलीकेशन कहा जाता है।

यह वायरस का नेचर होता है कि वह तेजी से अपनी संख्या में वृद्धि करता है और एक से दो, दो  से चार, चार से आठ और ऐसे ही अपने जैसे लाखों करोडों वायरस तैयार कर देता है।

वायरस के जेनेटिक मटेरियल में कई प्रकार के प्रोटीन होते हैं और जब एक वायरस से दूसरा वायरस बनता है तो यह जरूरी नहीं होता कि

पहले जैसे मॉडल का ही वायरस तैयार हो जाये, उसमें कुछ न कुछ परिवर्तन आ जाता है, जिसे म्यूटेशन कहा जाता है।

ऐसा ही कोरोना वायरस के साथ है। कोरोना के एक वायरस से जब दूसरा वायरस बना तो हर बार कुछ न कुछ नये बदलाव सामने आते गये।

और इसी बदलाव के कारण कुछ वायरस बिल्कुल ही नये लक्षणों वाले बन गये, जिनसे होने वाला खतरा भी पूरी तरह नया होता है।

और यह नये लक्षणों वाला वायरस एक या दो नहीं, बल्कि करोडों की संख्‍या में बन गये।

वर्तमान में कोरोनो के लाखों वेरियेंट पैदा हो चुके हैं, इनमें से कुछ वेरियेंट ऐसे हैं, जिनसे हमें खतरा नहीं है, तो उसपर हमें ध्यान देने की जरूरत भी नहीं है।



पर कुछ वेरियेंट ऐसे हैं, जिनसे हमें बहुत ज्यादा खतरा है जैसे-

ब्रिटेन में कोरोना का B.1.1.7 वेरियेंट पाया गया, साउथ अफ्रीका में B.1.351 वेरियेंट पाया गया, ब्राजील में P.1 वेरियेंट पाया गया तथा भारत में कोरोना का B.1.617.2 वेरियेंट तथा B.1.617.1 वेरियेंट पाया गया।

कोरोना का नामकरण कैसे हुआ

कोरोना के अलग-अलग वेरियेंट को जो इस प्रकार के नाम दिये गये हैं वो इनकी जेनेटिक संरचना के आधार पर दिये गये हैं।

चीन के बुहान शहर से जो कोरोना वायरस निकला था, उसका जेनेटिक नाम G614 है।

लेकिन यहॉ समस्या यह पैदा हुयी कि लोगों को ये जेनेटिक नाम बोलने में बडी समस्या होती थी, क्योंकि पहला तो, यह नाम याद रखना ही बड़ा कठिन है और दूसरा, बहुत ही बड़ा नाम है।

इसलिए लोग अपनी सुविधा के लिए साधारण बोलचाल की भाषा में कहने लगे ब्रिटेन वाला कोरोना, साउथ अफ्रीका वाला कोरोना, ब्राजील वाला कोरोना और भारत वाला कोरोना।

Delta Plus Variant Kya Hai

तो इससे इन देशों को दिक्कत होने लगी कि जिस देश से वायरस पैदा हुआ उसका तो कहीं नाम ही नहीं है

इसके बजाय हमारे देश का नाम बदनाम हो रहा है इसलिए इस समस्या को लेकर ये सभी देश WHO पहुंच गये और WHO के चीफ, ट्रेडोस से शिकायत की कि जब चीन से वायरस पैदा हुआ तब उसके वेरियेंट नहीं थे।

इसलिए उसे सिर्फ कोरोना कहा गया, पर जब पूरी दुनिया में कोरोना वायरस फैला और उसके कई वेरियेंट पैदा हुये

तब किसी भी वेरियेंट में चाइना का नाम नहीं लिया गया और जिस देश में कोरोना का जो वेरियेंट पाया गया, उसे उस देश के नाम से चिन्हित किया जा रहा है।

तब WHO के चीफ ने इस समस्या के समाधान के लिए यह रास्ता निकाला कि वैज्ञानिक तो इसे, इसके जेनेटिक संरचना वाले नाम से ही जानेंगे,

पर सामान्य बोलचाल के लिए ग्रीक भाषा के शब्दों का प्रयोग किया जायेगा।

और इसीलिए जो वायरस ब्रिटेन में पाया गया उसे अल्फा वेरियेंट नाम दिया गया, साउथ अफ्रीका वाले वायरस को बीटा वेरियेंट नाम दिया गया, ब्राजील वाले वायरस को गामा वेरियेंट नाम दिया गया।

भारत में कोरोना वायरस के दो वेरियेंट पाये हैं जिनमें B.1.617.2 को डेल्टा वेरियेंट और B.1.617.1 को कप्पा वेरियेंट नाम दिया गया। 

इन सभी वेरियेंट में से यदि दुनिया में सबसे खतरनाक कोई है तो वह है डेल्टा वेरियेंट।

हमारे देश भारत में इसी डेल्टा वेरियेंट ने  कोरोना की सेकण्ड वेब में भारी तबाही मचाई, जिसमें लाखों लोगों की जान चली गयी।

इस वेरियेंट से हमारे देश में सबसे ज्यादा युवा वर्ग प्रभावित हुआ है।

कथा स्टार katha star के जागरुक पाठकों यहॉ मैं आपको यह बता देना चाहता हूं कि यदि WHO ने भारत में मिलने वाले कोरोना वेरियेंट को डेल्टा वेरियेंट नाम न दिया होता तो

आज पूरी दुनिया यही कह रही होती कि इंडियन वेरियेंट बहुत खतरनाक है, इंडिया वाले वेरियेंट से बहुत से लोगों की मौत हो रही है, वगैरह-वगैरह।

और इसी में कुछ विरोधियों को भारत का नाम खराब करने का मौका मिल जाता। जबकि वास्तविकता में जिस देश से इस वायरस की शुरुआत हुयी थी उसकी कोई चर्चा ही नहीं है।

बस इसी कारण से कोरोना के अलग-अलग वेरियेंट को अलग-अलग नाम दिये गये हैं।

भारत में पाये गये डेल्टा वेरियेंट ने बहुत तबाही मचायी है, वहीं दूसरी ओर कप्पा वेरियेंट इतना ज्यादा खतरनाक नहीं है।

इसके बाद भारत में एक और वेरियेंट का पता चला है, जिसको नाम दिया गया है  Delta Plus Variant।

Delta Plus Variant से बचाव

यह डेल्टा वेरियेंट से भी खतरनाक है, क्योंकि इस पर तो वैक्सीन भी ज्‍यादा काम नहीं कर रही है। इसलिए आप सभी को वैक्सीन जरूर लगवाना चाहिए ताकि कोरोना के जो कम खतरनाक वेरियेंट हैं,

कम से कम उनसे तो हम लड़ सकें और हमें अस्पताल न जाना पडे और यदि थोड़ी बहुत तबीयत खराब होती भी है तो हम अपने घर पर रहकर ही उसका इलाज करके अपने आप को स्वस्थ कर पायें।

यदि आप वैक्सीन नहीं लगवाते हैं तो विचार कीजिए कि अगर आपको कोई साधारण वाला ही कोरोना हुआ है तो

आप उसके इलाज के लिए अस्पताल जायेंगे और अनजाने में वहां आपका संपर्क  Delta Plus Variant वाले मरीज से हो जाता है



तब आप बहुत ज्यादा खतरे में पड़ सकते हैं, इसलिए तुरंत वैक्सीन लगवाना ही एकमात्र बचाव है। वैज्ञानिकों का कहना है कि वर्तमान में  Delta Plus Variant के मरीजों की संख्या बहुत कम है।

आपकी जानकारी के लिए बता दें कि शुरुआत में कोरोना भी बहुत कम संख्‍या में था पर धीरे-धीरे पूरे देश को इसने अपनी चपेट में ले लिया था

इसलिए डेल्टा प्लस में भी ऐसा ही होगा, इसकी संभावना से इंकार नहीं किया जा सकता है।

और डेल्टा प्लस का प्रकोप थर्ड वेब में देखा जा सकता है।

कोरोना कैसे फैलता है | How to coronavirus spread

कोरोना की शुरुआत भारत में अगस्त 2020 में हुयी थी, तब यह बहुत डाउन था उसके बाद यह अचानक बढ़ गया था और उसके बाद फिर डाउन हो गया था।

11 सितम्बर 2020 को यह अपने सबसे विशाल रूप में था, उस दिन देश में 97,654 मरीज मिले थे।

उसके बाद यह धीरे-धीरे डाउन होता गया और दिसम्बर के महीने में पूरी तरह से निष्क्रिय हो गया था, जिसके बाद हमें तीन महीने जनवरी, फरवरी और मार्च का समय मिला था।

चौथे महीने यानी अप्रैल से कोरोना की सेकण्ड वेब शुरु हो गयी, जिसका अभी हम सामना कर रहे हैं।

सेकण्ड वेब में कोरोना का सबसे खतरनाक रूप 06 May 2021 को देखा गया था, उस दिन चार लाख चौदह हजार केस भारत में देखे गये थे।

वैज्ञानिकों के अनुसार यह सेकण्ड वेब जुलाई में पूरी तरह से डाउन हो जायेगा और कोरोना के पुराने ग्राफ के मुताबिक संभावित तीन महीने का समय हमको मिलेगा और तीन माह बाद तीसरा वेब आ जायेगा।

अगस्त, सितम्बर और अक्टूबर इन तीन महीनों में कोरोना डाउन रहेगा और अक्टूबर के लास्ट में या नवम्बर के शुरुआत में कोरोना का थर्ड वेब शुरु होने की संभावना रहेगी।

दुनिया के कई देशों में तो थर्ड और फोर्थ वेब भी आ चुके हैं इसलिए ऐसा नहीं कहा जा सकता कि भारत में थर्ड वेब नहीं आयेगा।

भारत में थर्ड वेब का कितना खतरा रहेगा

भारत में थर्ड वेब अक्टूबर-नवम्बर तक आयेगा इसलिए घबराने की जरूरत नहीं है, क्योंकि उस समय तक भारत के हर अस्पताल में पर्याप्त मात्रा में बेड उपलब्ध हो जायेंगे।

अभी तक जो भी स्वास्थ्य सुविधायें हमारे यहॉ नहीं थी, आने वाले कुछ महीनों में उनकी पूर्ति हो जायेगी, जैसे वैंटीलेटर, ऑॅक्सीजन इत्यादि।

भारत के अंदर कोरोना वैक्सीन रेमडीसिविर की कालाबाजारी भी हो रही थी, जिस पर अब सरकार का पूरा नियंत्रण है इसलिए अब वैक्सीन की भी मारामारी खत्म होने वाली है।

सरकार का वैक्सीनेशन कार्यक्रम भी चल रहा है जिसके तहत अक्टूबर-नवम्बर तक देश की लगभग सत्तर करोड़ जनता को वैक्सीनेट कर दिया जायेगा।

अगर हम इतिहास पर नजर डालें तो आज से लगभग सौ साल पहले स्पेनिश फ्लू  फैला था, उसमें भी तीन वेब आये थे, जिसमें दूसरा वेब बहुत खतरनाक था जबकि तीसरा वेब ज्यादा असरदार नहीं था।

हर महामारी का दूसरा वेब ही खतरनाक होता है, बाकी दो वेब की तुलना में।

तो अगर हम इतिहास से शिक्षा लें तो इसी प्रकार भारत में कोरोना का पहला वेब चला गया, दूसरे वेब में हमें काफी समस्यायें हुयी, पर हम उसे भी पार कर लिये।

अब आने वाला है तीसरा वेब, जिससे ज्यादा घबराने की जरूरत नहीं है, क्योंकि यह दूसरे वेब की तरह खतरनाक नहीं होगा, ऐसी संभावना बतायी जा रही है।

क्या भारत में वैक्सीन की किल्लत है– 

अभी यह बात सुनने में आ रही है कि भारत में वैक्सीन की कमी है, तो जहॉ तक मुझे जानकारी है कि अभी जून के महीने तक वैक्सीन की थोड़ी-बहुत कमी सामने आयी है,

परंतु आपकी जानकारी के लिए बता दूं कि स्पूतनिक वैक्सीन बनाने के लिए 06 कंपनियों ने मई के महीने में ही करार कर लिया है, जो कि अपना प्रोडक्शन जुलाई माह से शुरु कर देंगी।

इसी प्रकार सीरम इन्स्टीट्यूट ने भी वैक्सीन की आपूर्ति के लिए अलग से फैक्ट्री डालकर और अधिक सप्लाई लाइन शुरु कर दी है, जो कि जुलाई माह तक अपनी गति पकड़ लेगी।

इसके अलावा अन्य कंपनियों ने भी वैक्सीन की प्रोडक्शन बढ़ा दी है, जिसका असर पूरे देश में जुलाई से देखने को मिलेगा।

और जुलाई महीने तक देश में हर प्रकार की वैक्सीन जैसे स्पूतनिक, कोविडशील्ड व कोवैक्सीन वगैरह भारी मात्रा में उपलब्ध हो जायेंगी।

दूसरा डोज कितने दिन बाद लेना चाहिए

भारत के अंदर इस समय तीन ही वैक्सीन लगायी जा रही हैं, जो स्पूतनिक, कोविडशील्ड व कोवैक्सीन हैं। स्पूतनिक वैक्सीन, रुस की है, जिसमें दोनों डोज अलग-अलग दवाओं के होते हैं।

इसके अलावा कोविडशील्ड व कोवैक्सीन भारत में ही निर्मित हैं, जिनके दोनों डोज में एक ही दवा होती है, बस कुछ दिनों के अंतर से दूसरा डोज दिया जाता है।

कोवैक्सीन भारत में बहुत ही कम लोगों को लगा है और इसका दूसरा डोज 28 दिन के अंतर पर लगाया जा रहा है।

स्पूतनिक वैक्सीन 21 दिन के अंतर पर लगायी जा रही है।



पर कोविडशील्ड पर अभी भी एक राय नहीं बना पायी है। शुरुआत में यह 28 दिन के अंतर पर लगायी जा रही थी, फिर सरकार ने इसे 42 दिन के अंतर पर लगाने का आदेश दिया और इस समय इसे 56 दिन के अंतराल पर लगाया जा रहा है।

इसमें कुछ लोगों का यह भी कहना है कि भारत में वैक्सीन की कमी के कारण सरकार ने यह निर्णय लिया है, जो कि अफवाह मात्र है और  सरासर गलत है।

कोई देश वैक्सीन के पहले और दूसरे डोज के बीच में 08 सप्ताह का अंतर कर रहे हैं तो कोई 12 सप्ताह का तो कोई  12 से 16 सप्ताह का।

ऐसे में संशय होना स्वाभाविक है कि कितने दिनों के अंतर पर दूसरा डोज लिया जाये।

भारत के वैज्ञानिकों का कहना है कि कोविडशील्ड का दूसरा डोज लगभग 80 दिन के बाद लेने से सबसे अच्छे परिणाम सामने आ रहे हैं, इसमें लगभग 90% इम्यूनिटी बढ़ जाती है।

वहीं अगर 56 या 42 दिन के अंतर से दूसरा डोज लिया जाये तो 65-70% ही इम्यूनिटी हमारे शरीर के अंदर डेवलप हो पाती है।

इसलिए आप भी यदि कोविडशील्ड का दूसरा डोज लेने वाले हैं तो 80 से 90 दिन के बाद ही लीजिए।

क्या दोनों डोज एक ही वैक्सीन के लेना जरूरी हैं

इस पर अभी रिसर्च चल रहा है कि क्या दोनों डोज अलग-अलग वैक्सीन के लिये जा सकते हैं। जैसे मान के चलिए पहला डोज फाइजर का लग जाये और दूसरा मोडर्ना का लग जाये।

भारत में पहला डोज भारत वायोटेक का कोवैक्सीन लग जाये और दूसरा डोज कोविडशील्ड लग जाये। या पहला डोज कोविडशील्ड लग जाये और दूसरा डोज कोवैक्सीन लग जाये।

इसमें कई तरह के ट्रायल किये जा रहे हैं कि इससे खतरा ज्यादा तो नहीं है या किस स्थिति में इम्यूनिटी ज्यादा बन रही है।

भारत में ऐसे केस आये भी हैं, जिन्हें गलती से दोनों डोज अलग-अलग वैक्सीन के लग गये हैं, इससे वे लोग घबरा रहे हैं।

मेरा मानना है कि जब इस बात पर अभी रिसर्च चल रही है तो तब तक मिक्स डोज नहीं देना चाहिए थी। ट्रायल के परिणाम आने के बाद शायद ऐसा देखने को मिलेगा कि मरीजों को मिक्स डोज दिया जा रहा है।

वैक्सीन लेने के बाद की अफवाहें:

इंटरनेट पर एक वीडियो वायरल हो रहा था जिसमें दिखाया जा रहा था एक व्यक्ति के पूरे शरीर पर बर्तन चिपके हुये हैं, जिसमें कहा जा रहा था कि इस व्यक्ति ने कोरोना के दोनों डोज ले लिये हैं,

जिस कारण इसके अंदर चुंम्बकत्व आ गया है और सारी धातुयें इसके शरीर से अपने आप चिपक रही हैं। लेकिन उस व्यक्ति के शरीर के केवल उसी हिस्से से बर्तन चिपके हुये थे, जहॉ कपड़ा नहीं था,

जरा सोचिये कि चुम्बक और धातु के बीच में पतले से कपड़े के आ जाने से चुम्बक का चुम्बकत्व खत्म हो जायेगा? जॉच करने के बाद यह वीडियो फर्जी साबित हुआ।

दूसरी अफवाह यह फैली कि वैक्सीन लगवाने के दो साल बाद उस व्यक्ति की मृत्यु हो जायेगी और  

इसी बात को प्रमाणित करने के लिए किसी नोबल पुरस्कार विजेता वैज्ञानिक के एक इंटरव्यू वाले वीडियो में छेड़छाड़ करके अपलोड कर दिया।

ऐसा इसलिए भी किया गया, क्योंकि इस प्रकार के वीडियो यूट्यूब पर खूब चलते हैं और लोग इससे अच्छा पैसा कमाते हैं।

तो अपने निजी स्वार्थों की पूर्ति के लिए इस प्रकार के भ्रामक वीडियो अपलोड कर दिये जाते हैं।

इसमें सोचने वाली बात यह है कि अभी वैक्सीन लगे तीन-चार महीने ही हुये हैं तो कोई यह कैसे कह सकता है कि वैक्सीन लगवाने के दो साल बाद मृत्यु हो जायेगी।



तीसरी अफवाह यह फैली कि अगर वैक्सीन इतनी ही असरदार है तो इतनी ज्यादा संख्या में डॉक्टरों की मृत्यु क्यों हो रही है।

इसके दो कारण सामने आये हैं, पहला तो यह कि वैक्सीन आने के शुरुआती दौर में ही सबसे पहले डॉक्टरों को ही वैक्सीन दी गयी थी

और वैक्सीन का दूसरा डोज कब देना है यह निश्चित नहीं था इसलिए डॉक्टरों को वैक्सीन की दूसरी डोज 28 दिन बाद ही दे दी गयी थी।

जिससे डॉक्टर पूरी तरह से यह मान लिये कि अब उन्हें दोबारा कोरोना नहीं होगा, और वे कोरोना मरीजों का इलाज पहले के जैसे ही करने लगे।

पर जब वैक्सीनेटिड डॉक्टरों की मृत्यु कोरोना से होने लगी तब रिसर्च में पता चला कि 28 दिन बाद दूसरा डोज देने से शरीर में मात्र 56  प्रतिशत ही इम्यूनिटी बन पाती है,

इस कारण से वैक्सीन के दोनों डोज लेने के बाद भी डॉक्टरों को उसका पूरा लाभ नहीं मिल पाया और उनकी मृत्यु होती रही।

अगर इसी 28 दिन के गैप को 80 दिन कर दिया जाता तो इम्यूनिटी 56% से बढ़कर 90% हो जाती, तब किसी की भी मृत्यु नहीं होती।

परंतु ठीक से रिसर्च न हो पाने के कारण जल्दबाजी में डॉक्टरों को जल्दी-जल्दी दोनों डोज दे दिये गये, जिससे यह भारी नुकसान हुआ।

और इसी वजह से ही हमारे देश के बेहतरीन डॉक्टर श्री के.के. अग्रवाल जी का भी देहांत हो गया था।

दूसरा कारण यह सामने आया कि डॉक्टरों ने कोरोना काल में अपनी जान की परवाह न करते हुये मरीजों का इलाज किया।

पूरे दिन पीपीई किट पहने कोरोना मरीजों का इलाज करते रहे और  पिछले कई महीनों से कोरोना मरीजों से घिरे हुये हैं,

जिस कारण उनको संक्रमण होना स्वाभाविक है। इसलिए इतना महान काम करने वाले डॉक्टरों की तुलना सामान्य जनता से नहीं की जानी चाहिए।

कुछ असामाजिक तत्वों ने एवं कुछ राजनेताओं ने सरकार को जबरन घेरने के लिए और देश के अंदर अराजकता फैलाने के लिए यह भी अफवाह फैलायी कि

वैक्सीन लेने के बाद इंसान नपुंसक हो जाता है। जो कि सरासर गलत है, क्योंकि वैक्सीन का नपुंसकता से कोई लेना देना नहीं है।

यह अफवाह हमारे देश में नहीं चली, क्योंकि हम सभी शिक्षित हैं। हॉ, पाकिस्तान जैसे अशिक्षित देश में यह अफवाह जरूर काम करती है कि

पोलियो की दवाई पीने से दो से अधिक बच्चे पैदा नहीं होते हैं इसलिए वहॉ के लोग अपने बच्चों को पोलियो की दवा नहीं पिलाते हैं

और यही कारण है कि पाकिस्तान आज भी पोलियो से ग्रसित है जबकि हम 2014 में ही भारत को पोलियो मुक्त बना चुके हैं।

चलते चलते

इस प्रकार आप समझ गये होगें कि  Delta Plus क्‍या है।  Delta Plus Variant से सुरक्षित रहने के लिये आप वैक्‍सीन लगवाये, बाहर जाते समय मास्‍क पहने और समाजिक दूरी का पालन करे।

अगर आपके मन कोई सवाल या सुझाव है तो हमें कमेंट करके बताना मत भूलें। Delta Plus Variant Kya Hai लेख को अंत पढने के लिये आपका धन्‍यवाद।




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